लखनऊ। डायबिटीज से देश में सात करोड़ लोग पीड़ित हैं। डायबिटीज आंखों की बीमारी की पांचवीं बड़ी वजह है। डायबिटीज के मरीजों को चाहिए कि वह साल में एक बार आंखों के पर्दे की जांच जरूर कराएं। डायबिटीज काबू नहीं की तो आंख की रोशनी (अंधता) जाने का खतरा काफी बढ़ जाता है। यह जानकारी रविवार को पीजीआई के नेत्र विभाग के वरिष्ठ डॉ. विकास कनौजिया ने दी। डा. कनौजिया आल इंडिया ऑप्थॉमोलॉजिकल सोसायटी एकेडमिक एंड रिसर्च कमेटी की ओर से ‘डायबिटीज की वजह से अंधता की पहचान और इलाज’ विषय पर पीजीआई में सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) में सम्बोधित कर रहे थे। कमेटी के कोर्स कोऑर्डिनेटर डॉ. विकास कनौजिया ने बताया कि इस सीएमई में उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान और छत्तीसगढ़ से सरकारी व गैर सरकारी डॉक्टर पहुंचे।
इन सभी डॉक्टरों को डायबिटीज मरीज की आंख की जांच और इलाज की नई तकनीक के बारे में जागरुक किया गया। बताया गया कि डायबिटीज मरीज की आंख के पर्दे में सूजन आना, आंख के अंदर खून आ जाने से रोशनी जाने का खतरा अधिक रहता है। ऐसे में डॉक्टर को सही से जांच करके तुरंत ही मरीज का बेहतर और नई तकनीक से इलाज शुरू कर देना चाहिए। विकास ने बताया कि सूजन होने पर एक-एक माह पर तीन बार आंख के अंदर इंजेक्शन लगाकर नई तकनीक से बीमारी से बचाव हो सकता है।
पीजीआई नेत्र रोग विभाग की प्रमुख डॉ. कुमुदिनी शर्मा ने बताया कि संस्थान के इंडोक्राइन विभाग से ही रोजाना डायबिटीज के 70 से अधिक मरीज आते हैं। इनमें से 60 से 70 फीसदी डायबिटीज मरीजों में आंख के पर्दे की जांच में दिक्कत मिलती है। यानी कि इन डायबिटीज मरीज की आंख की रोशनी जाने का खतरा रहता है। ऐसे में इनका तुरंत इलाज किया जाता है। दिल्ली से आए कमेटी के चेयरमैन डॉ. ललित वर्मा व महाराष्ट्र ऑप्थॉमोलॉजी के अध्यक्ष डॉ. प्रशांत बावनकुले, पीजीआई के डॉ. ईश भाटिया, डॉ. शोभित चावला आदि प्रमुख डॉक्टरों ने अपने विचार और तकनीकी अपडेट दिया।
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