*केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में विश्व अस्थमा जागरूकता सप्ताह में हुए विविध आयोजन।*
लखनऊ। विश्व अस्थमा दिवस प्रतिवर्ष मई के पहले मंगलवार को मनाया जाता है साथ ही पूरे मई के महीने में अस्थमा जागरूकता के विभिन्न कार्यक्रम पूरी दुनिया में आयोजित किए जाते हैं। इसी क्रम में केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग द्वारा तीन प्रमुख कार्यक्रम आयोजित किये गये। पहला कार्यक्रम *’’अस्थमा वाकाथाॅन’’* किया गया। जिसमें केजीएमयू के चिकित्सकों एवं छात्रों द्वारा कुलपति कार्यालय से भारी संख्या में वॉक की शुरुआत हुई। इसमें छात्र अस्थमा के जागरूकता के संबंध में प्ले कार्ड लिए हुए थे, जिसमें इनहेलर लो और स्वस्थ रहो, धूम्रपान छोड़ो स्वस्थ रहो, फास्ट फूड छोड़ो, अस्थमा पर नियंत्रण रखो, तनाव मुक्त रहो, अस्थमा पर नियंत्रण रखो, जैसे नारे लिखे हुए थे। यह पैदल यात्रा बाल रोग विभाग, गांधी वार्ड, नेत्र विभाग से होता हुआ मेडिकल कॉलेज चैराहे पर पहुंचा जहां पर इस कार्यक्रम के आयोजक रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ0 सूर्यकान्त, विभाग के प्रोफेसर आर ए एस कुशवाहा एवम् डॉ संतोष कुमार ने आमजनों को अस्थमा की जागरूकता के संबंध में संबोधित किया। इस कार्यक्रम में नर्सिंग एवं पैरामेडिकल के छात्र भी शामिल रहें, साथ ही साथ बाला फाउंडेशन की प्रीति शाह, सामाजिक कार्यकर्ता शांतनु तथा बॉलीवुड के कास्टिंग डायरेक्टर वेदांत (फिल्म एनिमल फेम) भी उपस्थित रहे। यह वाकाथाॅन रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में जाकर समाप्त हुआ।
इसी क्रम में दूसरा कार्यक्रम निःशुल्क पीएफटी (पल्मोनरी फन्कशन टेस्ट) जांच शिविर का रहा जिसमें केजीएमयू के गेट के पास रोगियों के परिजनों एवं आमजनों को अस्थमा के बारे में जानकारी देते हुए 200 से अधिक लोगों की निःशुल्क फेफड़ों की कार्य क्षमता की जांच अर्थात पीएफटी की गई। तीसरा कार्यक्रम अस्थमा जागरूकता के उपलक्ष्य में रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के चिकित्सा एवं चिकित्सा स्वास्थ्य कर्मियों तथा रोगियों के परिजनों के लिए आयोजित किया गया। इसमें वैज्ञानिक तरीके से अस्थमा की नवीनतम जानकारियां प्रदान की गई एवं उसके बचाव के तरीके बताए गए। साथ ही डॉ सूर्यकान्त ने बताया कि अक्सर लोग अस्थमा रोगियों से सामाजिक भेद भाव करते है जबकि अस्थमा रोग छुआ छूत की बीमारी नहीं है। इसलिये ऐसा नहीं करना चाहिए।
इस वर्ष की अस्थमा जागरूकता माह की थीम *’’अस्थमा शिक्षा सशक्तीकरण’’* को ध्यान में रखते हुए डाॅ0 सूर्यकान्त ने बडे पैमाने पर अस्थमा के बारे में जागरूकता फैलाने का कार्य किया। डॉ0 सूर्यकान्त ने उत्तर प्रदेश दूरदर्शन पर अस्थमा के बारे में एक जागरूकता कार्यक्रम में प्रतिभाग किया। साथ ही डॉ0 सूर्यकान्त ने सोशल मीडिया *(Yutube- Dr Surya Kant, Fecebook page- KCH Respiratory Medicine, Instagram- kantdr.surya)* के माध्यम से लोगों को अस्थमा के बारे में जानकारी भी प्रदान करने का काम किया। उत्तर प्रदेश के महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी डॉ0 सूर्यकान्त ने अस्थमा के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
केजीएमयू के रेडियो गूँज के ऑडियो एवं वीडियो कार्यक्रम में भी डॉ0 सूर्यकान्त ने अस्थमा के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी देकर समाज को जागृत करने का कार्य किया। ज्ञात रहे कि डॉ0 सूर्यकान्त इंडियन कॉलेज आफ एलर्जी अस्थमा एवं अप्लाइड इम्यूनोलॉजी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे हैं और अस्थमा के क्षेत्र में एक पुस्तक अस्थमा में योग की भूमिका के लेखक भी हैं। इसके साथ ही उन्होंने अस्थमा पर 50 से ऊपर शोध पत्र और अस्थमा में योग की भूमि योग एवं प्राणायाम की भूमिका पर एचडी का भी एक निर्देशन किया है। डॉ0 सूर्यकान्त के अस्थमा के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए उन्हें डॉ0 डीएन शिवपुरी ओरेशन अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।
डाॅ0 सूर्यकान्त ने विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से आम जनमानस को आस्थमा बीमारी की मुख्य जानकारियों से अवगत कराया है।
*अस्थमा की समस्या कितनी गंभीर है-*
देश में 3.5 करोड़ लोग अस्थमा रोग से पीड़ित है।
उ0प्र0 में लगभग 60 लाख से ऊपर लोग अस्थमा से ग्रसित है।
विष्व में अस्थमा से होने वाली 46 प्रतिशत मौते भारत में होती है।
*अस्थमा की चुनौतियां-*
अस्थमा की सर्वश्रेष्ट और सबसे ज्यादा कारगर चिकित्सा है इन्हेलर थेरेपी।
लेकिन केवल 30 प्रतिशत लोग ही इन्हेलर प्रयोग करते है।
जो इन्हेलर का प्रयोग करते है वो भी इसे नियमित नही लेते।
इन्हेलर को लेकर काफी सामाजिक भ्रांतियां है जैसे इन्हेलर आखिरी इलाज है। इस की लत लग जाती है आदि। लोगों में भ्रम है कि इन्हेलर तभी लेना चाहिए जब ज्यादा सांस फूल रही हो।
*अस्थमा के लक्षणः* अस्थमा के प्रमुख लक्षण हैं, जैसे- खाँसी जो रात में और गम्भीर हो जाती है, सांस लेने में कठिनाई जोकि दौरों के रूप में तकलीफ देती हो, छाती में कसाव जकड़न, छाती में से घरघटाहट जैसी आवाज आना, गले से सीटी जैसी आवाज आना।
*अस्थमा का निदानः* दमा का निदान, अधिकतर लक्षणों के आधार पर एवं कुछ परीक्षण करके जैसे चिकित्सक का रोगी का परीक्षण तथा फेफड़े की कार्यक्षमता की जांच (पी0ई0एफ0आर0, स्पाइरोमेट्री, इम्पल्स ओस्लिमेटरी) द्वारा किया जाता है। अन्य जांचें जैसे कि खून की जांच, छाती एवं साइनस का एक्सरे इत्यादि भी की जाती हैं।
*अस्थमा का उपचारः* दमा के इलाज के लिए तीन तरीकों की दवाइयां होती है। वायुमार्ग खोलने के लिए, एलर्जी कारकों के प्रति आपके शरीर की प्रतिक्रिया कम करने के लिए तथा वायुमार्ग की सूजन कम करने के लिए। इसके लिए इन्हेलर होते है जिनके द्वारा सांस के जरिए दवा सीधे फेफड़े में पहुचंती है और उसका शरीर के अन्य अंगों पर न्यूनतम प्रभाव पड़ता है।
*अस्थमा के रोगी ये न करेंः* गांवों में इस समय गेहूँ की कटाई (थ्रेसर से) चल रही है ऐसे में खेतों की तरफ न जायें एवं भूसा और गन्दगी से अपने आपको बचायें। बच्चों को लम्बे रोंयेंदार कपड़े न पहनायें व रोंयेदार खिलौने खेलने को न दें। पंख या रेशम के तकिये का इस्तेमाल न करें। सेंमल की रूई से भरे तकिए, गद्दा या रजाई का इस्तेमाल न करें। घर के अन्दर फूलों वाले पौधे या ताजे फूलों को न रखें। सिगरेटध्बीड़ी न पियें। रोगी के घर में किसी अन्य को भी सिगरेट बीड़ी न पीनें दें। रोगी एयरकंडीशन या कूलर के कमरे से एकदम गर्म हवा में बाहर न जायें। यात्रा के दौरान बच्चों को लेकर वाहन की खिड़की के पास न बैठें। बिना डाक्टर की सलाह के कोई दवा लम्बे समय तक न खायें। धुआँ, धूल, मिट्टी, वाली जगह से बिना नाक मुँह ढंके न गुजरें। अस्थमा रोगी इत्र या परयूम (deodorant) का इस्तेमाल न करें। प्रमुख एलर्जन के सम्पर्क में न आयें। घर में जानवरों को न पालें तथा घर में धूल को न जमने दें व गंदा न रखें।
*अस्थमा रोग से बचने के लिए अन्य कारगर उपायः* मौसम बदलने से सांस की तकलीफ बढ़ती है तो मौसम बदलने के 4 से 6 सप्ताह पहले ही सजग हो जाना चाहिए और उचित चिकित्सा परामर्श लेना चाहिए। इन्हेलर व दवाएं विषेशज्ञ की सलाह के अनुसार ही लेनी चाहिए। ऐसे कारक जिनकी वजह से सांस की तकलीफ बढ़ती है या जो सांस के दौरे को जन्म देते है उनसे बचाव करना चाहिए। जैसे- धूल, धुंआ, गर्दा, नमी, सर्दी व धूम्रपान आदि। ऐसे खाद्य पदार्थ, जो रोगी के संज्ञान में स्वयं आ जाते है कि वे नुकसान कर रहे है, का परहेज करना चाहिए। साधारणतः शीतलपेय, फास्टफूड तथा केमिकल व प्रिजरवेटिव युक्त खाद्य पदार्थो (चाकलेट, टाफी, कोल्ड ड्रिंक व आइसक्रीम आदि) का परहेज करना चाहिए। सर्दी, जुकाम, गले की खरास या फ्लू जैसी बीमारी का तुरन्त इलाज कराना चाहिए, क्योंकि इससे बीमारी के बिगड़ने का खतरा रहता है। सेमल की रूई युक्त बिस्तरों का प्रयोग नहीं करना चाहिए तथा कारपेट, बिस्तर व चादरों की नियमित तथा सोने से पूर्व अवश्य सफाई करनी चाहिए। व्यायाम या मेहनत का कार्य करने से पहले इन्हेलर अवश्य लेना चाहिए। यदि रात में सांस फूलती है तो रात में सोने से पहले ही इन्हेलर तथा अन्य दवाएं उचित चिकित्सीय सलाह से लेने चाहिए। घर हवादार होना चाहिए, सीलन युक्त न हो तथा खुली धूप आनी चाहिए। रोगी को तेज व ठंडी हवा से बचायें, यात्रा के दौरान बच्चों को लेकर वाहन की खिड़की के पास न बैठें। बच्चों को लम्बे रोयेंदार कपड़े न पहनायें व रोयेदार खिलौने खेलने को न दें। घर की सफाई, पुताई व पेंट के समय रोगी को घर से बाहर रहना चाहिए। रोगी के कमरे में असली व नकली पौधे न रखें। कुत्ता, बिल्ली, पक्षी न पालें तथा घर को कॉकरोचों आदि से मुक्त रखें। अस्थमा को नियंत्रित रखें, नही तो कोरोना का भी खतरा बढ़ जाता है। अस्थमा के रोगी भाप लें तथा घर में आने वाले लोगो से नमस्ते करें व मास्क लगाकर ही मिलें। अस्थमा के रोगियों को चिकित्सक की सलाह पर न्यूमोकोकल, इन्फ्लूएंजा, कोविड आदि के टीके बचाव के लिए लगवाने चाहिए।