अयोध्यापुरी की तरह लखनऊ भी धाम : रामभद्राचार्य

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लखनऊ। अयोध्यापुरी की तरह लखनऊ भी धाम है। यह बात श्रीरामकथा आयोजन समिति के तत्वावधान में वरदान खण्ड गोमतीनगर में आयोजित रामकथा के पहले दूसरे दिन जगद्गु डिग्री रामानन्दाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य ने कही। इस अवसर पर प्रदेश के ग्रामीण अभियंत्रण विभाग के मंत्री राजेन्द्र सिंह ने कहा कि वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लखनऊ में लक्ष्मण मंदिर बनाने के लिए कहेंगे। रामकथा में स्वामी रामभद्राचार्य ने शिव-पार्वती विवाह के प्रसंग सुनाते हुए कहा कि माता सीता का भेष बनाने के कारण शिव के सती को त्याग कर दण्ड दिया।

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स्वामी रामभद्रायार्च ने कहा कि पूरा लखनऊ हाथियों की मूर्तियों से पट गया है लेकिन जिस लक्ष्मण के नाम पर यह शहर बसा है उनका कहीं मंदिर नहीं है। ग्रामीण अभियंत्रण विभाग के मंत्री ने कहा कि गु डिग्री की कृपा तभी होती है जब ईश्वर की कृपा होती है। वह जो कुछ भी हैं वह गु डिग्री स्वामी रामभद्राचार्य की अविरल कृपा के कारण हैं। उनका प्रयास होगा कि लखनऊ में लक्ष्मण मंदिर बनाने का सौभाग्य उनकी सरकार को मिले। स्वामी भद्राचार्य ने दूसरे दिन की कथा भी लक्ष्मण को केन्द्र में रखकर सुनाते हुए कहा कि लोग लक्ष्मण को शेषनाग समझने की भूल करते हैं। लक्ष्मण शेषनाग की गोद में शयन करने वाले विष्णु के अवतार हैं जो आज भी लखनऊ में भ्रमण कर रहे हैं। सुबह चार बजे उठकर हाथ-मुंह धोकर शांत भाव में बैठकर लक्ष्मण की पदचाप आज भी खासकर गोमती के किनारे सुनी जा सकती है।

स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि सती श्री राम की परीक्षा लेने के लिए जब सीता का रूप बनाकर गयी तो श्रीराम ने उनको प्रणाम किया लेकिन लक्ष्मण ने प्रणाम नहीं किया। श्री राम के यह पूछने पर कि उन्होंने सती को प्रणाम क्यों नहीं किया लक्ष्मण ने कहा कि सती ने मां सीता का रूप धरकर उनकी मां सीता का अपमान किया है। कोई भी पुत्र अपनी मां का अपमान नहीं सह सकता है। उनको जन्म देने वाली मां सुमित्रा ने वन जाते समय उनसे कहा था कि “तात तुम्हार राम वैदेही, पिता राम सब भॉति सनेही।” सती ने मां सीता का भेष बनाकर भक्त, भक्ति गु डिग्री व भगवान चारो का अपमान किया है। सती को मां सीता का वेष में देखकर लखन के भाव को प्रगट करते हुए तुलसीदास जी ने कहा कि “लक्ष्मण दीख उमाकृत बेषा, चकित भए तब हृदय विसेषा।” सती ने श्रीराम की परीक्षा लेने के बाद शंकर जी से भी छूट कहा किया कि “कछु न परीक्षा लीन्ह गोसाईं, कीन्ह प्रनाम तुम्हारी नाई।” लक्ष्मण ने शिव से सती को इसका दण्ड देने के लिए कहा आैर इसी कारण शिव ने सती का पत्नी के रूप में त्याग कर दिया।

सती ने जब पावर्ती के रूप में जन्म लिया तो उन्होंने मां सीता का भेष बनाने व श्रीराम की परीक्षा लेने का प्राश्चित हजारों साल कठोर तप कर किया। पार्वती के कठोर तप को देखकर श्री राम ने शंकर जी से पार्वती से विवाह करने को कहा। श्री राम के कहने पर ही शिवजी पावर्ती से विवाह करने को राजी हुए। शंकर ने अपने विवाह में चलने के लिए श्रीराम को तो निमंत्रित किया लेकिन लक्ष्मण को निमंत्रित नहीं किया क्योंकि शंकर जानते थे कि जहां राम हैं वहां लक्ष्मण होते ही हैं। राम व लक्ष्मण शिव के हृदय में विराजमान होकर बरात में गये। जब स्वामी रामभद्राचार्य ने “ऐसी कबहु न देखी बरात हो जैसी शिव की बरतिया” भजन सुनाया तो भक्त झूमकर नृत्य करने लगे। उन्होंने कहा कि शंकर जी जिस बैल पर सवार होकर बरात में गये थे उस बैल के चार सिंघ, तीन चरण, दो सिर व सात हाथ थे।

बैल राम-राम बोलता था। गणों ने शंकर जटा से मुकुट आैर सांपों का मौर बनाकर सजाया। कर त्रिसूल आैर डम डिग्री विराजा चले बसहि चढ़ि बाजहि बाजा। उन्होंने “डम डम डम डम डिग्री बजावे ला हमार जोगिया” सुनाकर बरात की शोभा का गुणगान किया। शंकर का वेष देखकर पार्वती की मां मैना ने जब विवाह करने से मना कर दिया तो पार्वती ने मां को समझाया कि यह भक्ति व भगवान का मिलन है। शिव के सिर पर राम भक्ति रूपी गंगा है। उन्होंने काम को भस्म कर दिया जिसकी भस्म से उनका शरीर सुशोभित होता है। विवाह के बाद सारे देवों को शिव ने बिदा कर दिया लेकिन जब राम जाने लगे तो शिव ने कहा कि तुमको नहीं जाने दूंगा आैर उन्होंने ” तुम्हे जाने न दूंगा अवध संईयां” भजन से शिव के भाव को प्रगट किया।

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