लखनऊ – बच्चों में रॉबाटिक सर्जरी में सबसे बेहतर की जा सकती है। इससे बच्चे का ब्लडलॉस व अन्य दिक्कते कम हो सकती है, लेकिन इसमें बच्चों को एनेस्थीसिया का महत्वपूर्ण रोल है आैर इसमें प्रशिक्षित डाक्टर को करना चाहिए। यह जानकारी डा. संगीता खन्ना ने नेशनल काफ्रेंस ऑफ पीडियाट्रिक एनेस्थीसिया कार्यशाला के अंतिम दी। इसके अलावा कार्यशाला में बच्चों के पेन मैनेजमेंट व ब्लड ट्रांसफ्यूजन पर भी विशेषज्ञ ने अपडेट किया।
डा. खन्ना ने बताया कि अब बच्चों के इलाज से लेकर सर्जरी तक विशेष ध्यान दिया जाने लगा है। बच्चों के इलाज के लिए एक छत के नीचे अलग सभी सुविधाएं होनी चाहिए, जिनको प्रशिक्षित होना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि अब विदेशों में बच्चों की राबाटिक सर्जरी भी की जा रही है। इस तकनीक से करने पर बच्चों में ब्लड लॉस तो कम होता है, बेहद सटीक सर्जरी होने पर रिकवरी भी जल्दी होती है। इस सर्जरी में एनेस्थीसिया डाक्टर का महत्वपूर्ण रोल होता है। वह बेहोशी ही नही पल्स, हार्ट रेट के अलावा रेस्पटरी सिस्टम का भी विशेष ध्यान रखता है। डा. जैकब ने बताया कि बच्चे की जटिल सर्जरी के बाद पल्स व हार्ट रेट का विशेष ध्यान देना चाहिए। इसके लिए आईसीयू में प्रशिक्षित स्टाफ की आवश्यकता होती है। । इसके अलावा कार्यशाला में बच्चों के पेन मैनेजमेंट व ब्लड ट्रांसफ्यूजन पर भी विशेषज्ञ ने अपडेट किया।
डा. जैकब ने कहा कि बच्चों में एनाटॉमी, फिजियोलॉजी एकदम अलग होती है।
इलाज व सर्जरी करने से पहले विशेष ध्यान रखना चाहिए। जटिल सर्जरी में एनेस्थीसिया महत्वपूर्ण व संवेदनशील है। इसके लिए प्रशिक्षित डाक्टर होना चाहिए। अक्सर बच्चों को डोज ज्यादा होने पर उनके ब्रोन सेल्स व लंग पर प्रभाव पड़ता है जो कि कुछ समय बाद दिखता है। उन्होंने कहा कि बच्चों का आईसीयू अलग होना चाहिए। उसके उपकरणों के संचालन के लिए प्रशिक्षित स्टाफ हो जोकि बच्चों के लिए ही हो। इसके अलावा समय- समय पर उनको अपडेट भी करना चाहिए। प्रो. जैकब ने बताया कि बच्चों की जटिल सर्जरी के बाद पल्स आक्सीटर के माध्यम से हार्ट रेट व पल्स रेट पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। डा. रिचा ने बच्चों में ब्लड ट्रांफ्यूजन में होने वाली दिक्कतों व उसके निदान के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बच्चों की उम्र व वजन के अलावा बीमारी को ध्यान देने के बाद ही ब्लड ट्रांसफ्यूजन करें। लखनऊ , बच्चों में रॉबाटिक सर्जरी में सबसे बेहतर की जा सकती है।
इससे बच्चे का ब्लडलॉस व अन्य दिक्कते कम हो सकती है, लेकिन इसमें बच्चों को एनेस्थीसिया का महत्वपूर्ण रोल है आैर इसमें प्रशिक्षित डाक्टर को करना चाहिए। यह जानकारी डा. संगीता खन्ना ने नेशनल काफ्रेंस ऑफ पीडियाट्रिक एनेस्थीसिया कार्यशाला के अंतिम दी। इसके अलावा कार्यशाला में बच्चों के पेन मैनेजमेंट व ब्लड ट्रांसफ्यूजन पर भी विशेषज्ञ ने अपडेट किया। डा. खन्ना ने बताया कि अब बच्चों के इलाज से लेकर सर्जरी तक विशेष ध्यान दिया जाने लगा है। बच्चों के इलाज के लिए एक छत के नीचे अलग सभी सुविधाएं होनी चाहिए, जिनको प्रशिक्षित होना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि अब विदेशों में बच्चों की राबाटिक सर्जरी भी की जा रही है। इस तकनीक से करने पर बच्चों में ब्लड लॉस तो कम होता है, बेहद सटीक सर्जरी होने पर रिकवरी भी जल्दी होती है।
इस सर्जरी में एनेस्थीसिया डाक्टर का महत्वपूर्ण रोल होता है। वह बेहोशी ही नही पल्स, हार्ट रेट के अलावा रेस्पटरी सिस्टम का भी विशेष ध्यान रखता है। डा. जैकब ने बताया कि बच्चे की जटिल सर्जरी के बाद पल्स व हार्ट रेट का विशेष ध्यान देना चाहिए। इसके लिए आईसीयू में प्रशिक्षित स्टाफ की आवश्यकता होती है। । इसके अलावा कार्यशाला में बच्चों के पेन मैनेजमेंट व ब्लड ट्रांसफ्यूजन पर भी विशेषज्ञ ने अपडेट किया।
डा. जैकब ने कहा कि बच्चों में एनाटॉमी, फिजियोलॉजी एकदम अलग होती है। इलाज व सर्जरी करने से पहले विशेष ध्यान रखना चाहिए। जटिल सर्जरी में एनेस्थीसिया महत्वपूर्ण व संवेदनशील है। इसके लिए प्रशिक्षित डाक्टर होना चाहिए। अक्सर बच्चों को डोज ज्यादा होने पर उनके ब्रोन सेल्स व लंग पर प्रभाव पड़ता है जो कि कुछ समय बाद दिखता है। उन्होंने कहा कि बच्चों का आईसीयू अलग होना चाहिए। उसके उपकरणों के संचालन के लिए प्रशिक्षित स्टाफ हो जोकि बच्चों के लिए ही हो। इसके अलावा समय- समय पर उनको अपडेट भी करना चाहिए।
प्रो. जैकब ने बताया कि बच्चों की जटिल सर्जरी के बाद पल्स आक्सीटर के माध्यम से हार्ट रेट व पल्स रेट पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। डा. रिचा ने बच्चों में ब्लड ट्रांफ्यूजन में होने वाली दिक्कतों व उसके निदान के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बच्चों की उम्र व वजन के अलावा बीमारी को ध्यान देने के बाद ही ब्लड ट्रांसफ्यूजन करें।