बच्चों के साथ घर में होने वाली घटनाओं के प्रति नहीं है जागरूकता

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लखनऊ। विश्व स्वास्थ्य संगठन आंकड़ों के अनुसार नौ फीसद बच्चे घर में जल जाते हैं। वहीं पांच फीसद बच्चे ऊंचाई से गिरने पर चोटिल हो जाते हैं। इसके लिए अभी तक सरकार की ओर से कोई जागरुकता कार्यक्रम नहीं चलाया जा रहा है। यह जानकारी डॉ.राम मनोहर लोहिया संस्थान में बालरोग विशेषज्ञ डॉ.दीप्ति अग्रवाल ने फोरेंसिक मेडिसिन विभाग की ओर से आयोजित चिकित्सा संगोष्ठी में दी। संगोष्ठी का उद्घाटन सेवानिवृत्त जिला जज विजय वर्मा, निदेशक डॉ.एके त्रिपाठी ने किया।

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उन्होंने बताया कि नवजात से लेकर पांच वर्ष की आयु के बच्चे सबसे ज्यादा घर में ही चोटिल होते हैं। घर में गिरकर चोटिल होने वाले पांच फीसद बच्चों में 60 फीसद बच्चों की मौत हो जाती है। यह सभी चीजें ऐसी हैं जिन्हें रोका जा सकता है। इसके लिए भारत सरकार को पहल करनी चाहिए। जलने से बचने के लिए घर में स्मोक अलार्म लगाए, बिजली के स्विच कवर्ड लगाएं, सीढिय़ों पर रैलिंग लगाएं, किचन एरिया सेपरेट हो, विंडों में गार्ड लगाएं, बच्चों को वॉकर पर न छोड़े

मेडिकल कॉलेज बांदा के प्राचार्य डॉ.मुकेश यादव ने बताया कि अक्सर बच्चा घर में कभी कभी कुछ उल्टी सीधी चीज खा लेता है तो उसे तुरंत किसी अच्छे हेल्थ सेंटर ले जाना चाहिए। इसके अलावा छोटे बच्चों को ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। घर में किसी भी तरह की ऐसी चीज नहीं रखनी चाहिए जो उसके हाथ तक पहुंचे। यह है टॉयलेट क्लीनर, डिटरजेंट, ड्रग्स, एल्कोहल, लेड के टॉयज, जंक फूड आदि।

यूपी में सबसे ज्यादा चाइल्ड एब्यूज के मामले

टीएसएम मेडिकल कॉलेज के फोरेंसिक मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ.राजेश चतुर्वेदी ने बताया कि नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के वर्ष 2017, 18 के आंकड़ों के अनुसार देश में हर साल लगभग दो लाख चाइल्ड एब्यूज के मामले आते हैं। वहीं प्रदेश में बाल अपराध के 34,000 के मामलों में 4,194 मामले केवल चाइल्ड एब्यूज के आते हैं।

78 फीसद जानने वाले करते हैं चाइल्ड एब्यूज

डॉ.चतुर्वेदी ने बताया कि चाइल्ड एब्यूज के 75 फीसद मामले घर के अंदर के या जानने वाले करते हैं। वहीं 34 फीसद लोग अंजान होते हैं। बच्चों को स्कूल में और घर में गुड टच और बेड टच के बारे में बताना चाहिए। 12 से 14 वर्ष की आयु में चाइल्ड एब्यूज के मामले और 14 से 18 वर्ष की आयु में रेप के मामले सबसे ज्यादा होते हैं। सीएमई का उद्घाटन सेवानिवृत्त जिला जज विजय वर्मा, निदेशक डॉ.एके त्रिपाठी ने किया।

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