लखनऊ। पीडियाट्रिक एनेस्थीसिया का प्रशिक्षण आवश्यक है। एनेस्थीसिया देने में अगर डोज ज्यादा हो जाए तो ब्रेन सेल्स भी डेमेज होने की आशंका रहती है। यह जानकारी एम्स दिल्ली के विशेषज्ञ प्रो. एम के अरोरा ने नेशनल काफ्रेंस आफ पैडियाट्रिक एनेस्थीसिया कार्यशाला में ने दी। तीन दिनों तक चलने वाली कार्यशाला में पीडियाट्रिक एनेस्थीसिया तकनीक के बारे में विश्वस्तर के विशेषज्ञ डाक्टर जानकारी देंगे। देर शाम को कार्यशाला का उद्घाटन किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रविकांत ने दिया।
डा. अरोरा ने बताया कि एनेस्थीसिया दिया जाने में अक्सर डाक्टर उम्र के अनुसार बेहोश करते है, जब कि गाइड लाइन के अनुसार बच्चों के शारीरिक संरचना के अनुसार एनेस्थीसिया दिया जाना चाहिए। जरा सी चूक ब्रोन की कोशिकाओं को क्षति ग्रस्त कर सकती है। उन्होंने कहा कि आपरेशन थियेटर का तापमान मानक के अनुसार नहीं होने पर नवजात शिशु को हाइपोथर्मिया हो सकता है। आमतौर पर छोटे अस्पतालों व निजी अस्पतालों में आपरेशन थियेटर का तापमान मानक के अनुसार नहीं होता है।
डा. अरोरा ने कहा कि ज्यादातर अस्पतालों के आपरेशन थियेटर का तापमान मानक के अनुसार नहीं होता है। ऐसे में नवजात शिशु को हाइपोथर्मिंया होने की आशंका ज्यादा होती है। इसके अलावा बच्चों को आईवी फ्लूड चढ़ाने में ध्यान नहीं दिया जाता है। अक्सर ज्यादा होने पर फेफड़े प्रभावित होने के सम्भावना रहती है। इरा मेडिकल कालेज के प्रो. संजय ने बताया कि बच्चों की सर्जरी या एनेस्थीसिया देना बेहद संवेदनशील वर्क है।
उन्होंने बताया कि इसके लिए विशेषज्ञता होनी चाहिए। गुजरात, महाराष्ट्र आदि में अस्पतालों में एनेस्थीसिया के विशेषज्ञ होने के अलावा बच्चों को दिये जाने वाले इलाज के उपकरण भी बेहद अपडेट है। अस्पतालों में सिर्फ बच्चों का ही इलाज किया जाता है। कार्यक्रम आयोजक डा. अनिता मलिक ने कहा कि केजीएमयू में डीएम पाठ¬क्रम जल्द शुरू होने जा रहा है। इसके लिए एमसीआई को प्रस्ताव भेजा गया है। देर शाम को कार्यशाला का कुलपति प्रो. रविकांत ने उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि पीडियाट्रिक एनेस्थीसिया में प्रोटोकाल का फालोअप किया जाना चाहिए।