हालाँकि यह तकनीक अभी प्रायोगिक दौर में है। लेकिन उम्मीद की जा रही है की अब दांतों के ख़राब होने यानि दंतक्षय और दांत में गड्ढे होने का पता पहले ही चल जाया करेगा। मिली ख़बरों के मुताबिक इंडियानापोलिस स्थित इंडिआना यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ डेंटिस्ट्री के वैज्ञानिकों ने फोटोग्राफी की एक ऐसी विधि का विकास किया है जिसकी मदद से दन्त सुरक्षा के क्षेत्र में क्रांति आ जाएगी। इन वैज्ञानिकों द्वारा विकसित विधि का नाम क्वांटेटिव लाइट फ्लोरीसेंस है।
फॉस्फेट और कैल्शियम के कारण हुए क्षरण का भी पता चल जाता है –
इसके तहत हाई इंटेंसिटी लाइट और एक नन्हे से कैमरे का इस्तेमाल दांतों की जाँच के लिए किया जाता है। इस विधि से दांतो की सतह पर फॉस्फेट और कैल्शियम के कारण हुए क्षरण का भी पता चल जाता है। दंतक्षय की पहली निशानी इन्ही तत्वों का क्षरण होना होता है। इस खास कैमरे से निकली गयी तस्वीरों को देख कर दन्त विशेषज्ञ कैविटी पनपने के महीने भर के भीतर ही इसका पता लगा लेता है। या यूँ कहें की एक्सरे या नंगी आँख से दिखने वाले कोटर का पता उनके विकसित होने के २-३ साल पहले से ही चल जाता है। यह कहना है यूनिवर्सिटी के प्रिवेंटिव डेंटिस्ट्री के जाने माने प्रोफ़ेसर और शोध परियोजना के एसोसिएट डीन जॉर्ज के स्टुके पीएचडी का।
शुरुआती चरण के दन्त क्षय का इलाज तो आसान है ही, यहाँ तक की दांत को फिर से पूर्वावस्था में फ्लोराइड की मदद से लाया जा सकता है। बीमारी का पहले पता चलने और इलाज करवाने से दांतों की रेस्टोरेशन की समय सीमा को बढ़ाया जा सकता है। फिलहाल इस विधि का चिकित्सकीय परीक्षण चल रहा है और उम्मीद है जल्द ही इसका उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाने लगेगा।