लखनऊ – अब ब्लड डोनेशन करने से पहले बीमारियों की केस हिस्ट्री के साथ ही समलैंगिक है या नहीं। इसकी भी जानकारी देनी होगी। इसके बाद ही ब्लड बैंक में डाक्टर निर्णय लेगा कि वह ब्लड डोनेशन कर सकता है कि नहीं। यह जानकारी समलैंगिकता को कानूनी मान्यता देने के बाद ब्लड बैंकों में ब्लड डोनर्स से स्क्रीनिंग में यह सवाल अनिवार्य रूप से पूछा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि समलैंगिक होने पर संक्रमण की आशंका ज्यादा होती है। केस हिस्ट्री के आधार पर ब्लड डोनेशन से रोका भी जा सकता है।
अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दी है, जिसके चलते अब लोग समलैंगिकता को खुलकर स्वीकार कर रहे हैं। पहले समलैंगिक होना अपराध के दायरे में आता था, अब लोेग इसको स्वीकार करने लगे है। केजीएमयू के ब्लड बैंक में ब्लड डोनेशन से पहले पुरुष- महिलाओं से समलैंगिकता से जुड़े प्रश्न पूछना अनिवार्य कर दिया गया है। ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की प्रमुख डॉ. तूलिका चंद्रा का कहना है कि पहले भी ब्लड बैंक में रक्तदान से पहले पुरुष- महिलाओं से शक के आधार पर उनसे समलैंगिकता से जुड़ी जानकारी ले ली जाती थी, लेकिन तब समलैंगिक होना गैरकानूनी के दायरे में आता था। इसलिए ब्लड डोनर सच को स्वीकार करने में कतराता था, लेकिन समलैंगिकता को कानूनी मान्यता मिलने के बाद ब्लड डोनर इसको लेकर साफ तौर पर जानकारी दे रहे हैं।
डॉ. तूलिका चंद्रा ने बताया कि समलैंगिकता को कानूनी मान्यता मिलने के बाद सबसे बड़ा लाभ ये हुआ है कि ऐसे लोगों में सच बोलने की हिम्मत जागृत हुई है और वह सही बात बताता है। क्योंकि ब्लड डोनर से पूरी केस हिस्ट्री लेते है। इसके बाद हम ब्लड की क्वालिटी का निर्धारण कर पाते हैं। डॉ. तूलिका ने बताया कि भारत में समलैंगिकों के रक्तदान पर रोक है, क्योंकि इनके ब्लड में विभिन्न प्रकार के संक्रमण और हेपेटाइटिस बी और सी, एचआईवी जैसी बीमारियों के होने के संभावना ज्यादा होती है। यहीं नही बाय-सैक्सुअल पुरुष, ट्रांसजेंडर और महिला यौनकर्मी के रक्तदान पर भी रोक है।
इसके अलावा नियम में कैंसर, ऑर्गन फेलियर, एलर्जी, सांस की बीमारी से ग्रसित लोगों के रक्तदान पर भी रोक है।
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