क्वीन मेरी : गर्भस्थ शिशु को चढ़ाया ब्लड,करा दी सुरक्षित डिलीवरी

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क्वीनमेरी में इंट्रायूट्राइन ब्लड ट्रांसफ्यूजन सुविधा शुरू

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लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के क्वीनमेरी अस्पताल के डॉक्टरों ने गर्भ में पल रहे भ्रूण को ब्लड चढ़ाकर जान बचाने में सफलता प्राप्त की है। क्वीनमेरी में पहली बार फिटल ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया गया है। सर्जरी से प्रसव के बाद नवजात शिशु पूरी तरह से स्वस्थ है।

उन्नाव के आर्दश नगर निवासी गर्भवती प्रतिमा वर्मा का इलाज कानपुर के एक अस्पताल में चल रहा था। सात महीने के गर्भावस्था के दौरान भ्रूण की स्वस्थ का टेस्ट किया गया, जांच में भ्रूण में ब्लड की कमी पायी गयी। वहां के डॉक्टरों ने गर्भवती को क्वीनमेरी अस्पताल इलाज के लिए रेफर कर दिया। परिजन गर्भवती को लेकर क्वीनमेरी अस्पताल पहुंचे। यहां डॉ. सीमा मेहरोत्रा ने मरीज की जांच पड़ताल करते हुए पूरी केस हिस्ट्री ली। केस हिस्ट्री में पता चला कि महिला पहले दो बार गर्भवती हो चुकी थी।

इस बार गर्भधारण के बाद वह लाल रक्त कोशिका एलोइम्युनाइजेशन की शिकार हो गयी। भ्रूण का हीमोग्लोबिन 12 से कम हो कर सात पहुंच गया था, जिससे हार्ट फेल होने की संभावना हो गयी थी। गर्भस्थ शिशु की जान भी जा सकती थी। डॉक्टर ने जांच रिपोर्ट के आधार पर विचार विमर्श करके गर्भ में ही भ्रूण को ब्लड चढ़ाने का निर्णय लिया। डाक्टरों ने पहली बार दो बार को गर्भाशय में भ्रूण को ब्लड चढ़ाया। 35 हफ्तें में 20 को सिजेरियन द्वारा तीन किलो शिशु की डिलीवरी करायी गयी। डॉ. नम्रता ने बताया कि पहली बार गर्भास्थ शिशू को मां के गर्भाशय में ब्लड चढ़ाया गया है। चिकित्सा विज्ञान में इसे इंट्रायूट्राइन ब्लड ट्रांसफ्यूजन कहते हैं। इसमें अल्ट्रासाउंड की मदद से सुई के जरिए गर्भाशय में ही भ्रूण को ब्लड ट्रासंफ्यूजन किया जाता है। विभागाध्यक्ष डॉ. अंजु अग्रवाल ने बताया कि क्वीनमेरी में इंट्रायूट्राइन ब्लड ट्रांसफ्यूजन चिकित्सा सुविधा शुरू की गई है। अब हमने आरएच-इसोइम्युनाइजेशन गर्भावस्था के इलाज में सफलता प्राप्त की है।
डॉ. नम्रता ने बताया कि माता-पिता का खून आरएच विपरीत होने पर बनता है। नवजात की मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव और पिता के ब्लड ग्रुप आरएच पॉजिटिव होने पर के कारण ऐसी स्थिति पैदा हुई। उन्होंने बताया कि विपरीत रक्त समूह के कारण भ्रूण आरएच पॉजिटिव हो सकता है। मां में एंटीबॉडी विकसित होते हैं। जो प्लासेंटा को पार करते हैं, जो कि भ्रूण के आरबीसी को नष्ट कर देते हैं।

जिससे भ्रूण एनीमिया की चपेट में आ जाता है। ऐसी स्थिति में पूरे भ्रूण में सूजन आ जाती है। ऐसे मामलों में गर्भाशय में ही भ्रूण की मौत हो जाती है। इलाज करने की टीम में डॉ. सीमा मेहरोत्रा, डॉ. नम्रता, डॉ. मंजूलता वर्मा, रेडियोलॉजी विभाग के डॉ. सौरभ, डॉ. सिद्धार्थ, बाल रोग विभाग के डॉ. हरकीरत कौर, डॉ श्रुति और डॉ. ख्याति मौजूद रहीं। ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की प्रमुख डॉ. तूलिका चंद्रा ने ओ-नेगेटिव खून उपलब्ध कराया।

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