लखनऊ । पीजीआई के समीप स्थित राजधानी अस्पताल में बुखार से पीड़ित अमेठी की निर्मला सरोज को भर्ती कराकर उसके अंग निकालने का आरोप लगा है। बहन का आरोप है कि एम्बुलेंस चालक ने कमीशन के लालच में उन्हें केजीएमयू पहंुचाने के बजाए राजधानी अस्पताल में मौत की दहलीज तक पहंुचा दिया। दो दिन तक राजधानी अस्पताल प्रबंधन इलाज के नाम पर धन उगाही करता रहा आैर उसे मरीज से मिलने नहीं दिया। आखिरकार दो दिन बाद मरीज की मौत की सूचना दी। पीड़िता का कहना है कि जब बहन का शव देखा तो पेट के दोनों तरफ चीरा लगा था। इससे यह साफ था कि उसके अंग निकाले गये, जिससे उसकी मौत हुई। पीड़िता चौकी, पीजीआई थाना व एसएसपी के पास गयी। मदद न मिलने पर कोर्ट का दरवाजा खटखटा। इसके बाद पीजीआई पुलिस ने कोर्ट के आदेश पर बुधवार को राजधानी अस्पताल के प्रबंधक डा. अनन्तशील चौधरी, स्टॉफ नर्स व एम्बुलेंस चालक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली है। इंस्पेक्टर रवीन्द्र नाथ राय का कहना है कि मामले की जांच की जा रही है।
अमेठी के जगदीशपुर स्थित इमली गांव में रहने वाली शिवपति सरोज ने बताया कि 19 अक्टूबर 2017 को उसकी बहन निर्मला सरोज की अचानक तबीयत खराब हो गयी। तेज बुखार के चलते उसे अमेठी के सूर्या अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहां डॉ. भव्य शर्मा ने प्राथमिक उपचार किया लेकिन हालत में सुधार न होता देख डॉक्टरों ने केजीएमयू रेफर कर दिया। शिवपती का कहना है कि सूर्या अस्पताल से रेफर होने का पत्र मिलने पर उसने 2700 रुपये में एम्बुलेंस बुक की आैर लखनऊ के केजीएमयू के लिए रवाना हुई।
शिवपति ने बताया कि रास्ते में एम्बुलेंस चालक अमेठी के कमरौली निवासी रामधीरज चौरसिया ने उनसे बातचीत की। पीड़ा पूछने के बाद उसने कहा कि केजीएमयू सरकारी अस्पताल है आैर वहां इलाज भी सही नहीं होता है। रामधीरज ने उससे कहा कि पीजीआई के सैनिक विहार स्थित राजधानी अस्पताल में उसकी सेटिंग है आैर वहां वह कहकर उसकी बहन का इलाज सस्ता व बेहतर करा देगा। इस पर शिवपति निजी अस्पताल में इलाज के लिए राजी नहीं हुई। बावजूद चालक रामधीरज ने कमीशन के चलते में उसकी बहन को मौत के मुहाने तक पहंुचा दिया। वह एम्बुलेंस लेकर राजधानी अस्पताल पहंुच गया आैर वहां निर्मला राजपूत को भर्ती करा दिया। शिवपति सरोज का कहना है कि बहन को भर्ती कराते ही काउण्टर पर उससे 6 हजार रुपये जमा करा लिए गये।
उसके बाद स्टॉफ नर्स ने पर्चा पकड़ाते हुए 20 हजार रुपये की दवा मंगवा ली। अगले दिन फिर से काउण्टर पर 10 हजार रुपये जमा करा लिए गये। दो दिन तक डॉक्टरों ने उसे अपनी बहन से मिलने नहीं दिया। 21 अक्टूबर की सुबह स्टॉफ नर्स ने उससे कहा कि मरीज निर्मला राजपूत को केजीएमयू/एसजीपीजीआई रेफर किया जा रहा है। वजह पूछने पर स्टॉफ नर्स गोलमोल जवाब देने लगी। शिवपति का कहना है कि उसने आपत्ति जतायी कि पहले उसे बहन से मिलने नहीं दिया गया आैर अब रेफर किया जा रहा है। इस पर स्टॉफ नर्स उसे लेकर मरीज से मिलवाने कमरे में ले गयी। शिवपति ने कमरे में जाकर बहन निर्मला को आवाज दी, हिलाया लेकिन शरीर पर कोई हलचल नहीं मिली। इसी दौरान शिवपति की नजर निर्मला के पेट पर पड़ी तो खून बह रहा था। दाएं व बाएं तरफ चीरा लगा हुआ था।
यह देख वह रोने लगी। इसी दौरान डॉक्टर अनन्तशील चौधरी ने उससे कहा कि मरीज की मौत हो गयी है। यह कहते हुए उससे सादे कागजों पर अंगूठा लगाने का कहा गया। इंकार करने पर स्टॉफ नर्स ने जबरन अंगूठा लगवाकर शव सुपुर्द कर दिया। शिवपति का कहना है कि वह शव लेकर गांव पहंुची, जहां ग्रामीणों व रिश्तेदारों की मौजूदगी में 22 अक्टूबर को शव दफ्ना दिया गया। 23 अक्टूबर को वह पीजीआई थाने पहंुची आैर तहरीर दी लेकिन पुलिस ने तहरीर लेकर रखी ली, पर मदद नहीं की। शिवपति का कहना है कि वह तीन माह तक थाने-चौकी के चक्कर लगाते रही लेकिन पुलिस जांच की बात कर उसे टरकाती रही। बीते 5 मार्च को उसने तत्कालीन एसएसपी दीपक कुमार को भी पत्र दिया लेकिन फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
आखिरकार उसने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इंस्पेक्टर रवीन्द्र नाथ राय ने बताया कि बुधवार को कोर्ट के आदेश पर राजधानी अस्पताल के प्रबंधक डा. अनन्तशील चौधरी, स्टॉफ नर्स व एम्बुलेंस चालक रामधीरज चौरसिया के खिलाफ बुधवार को रिपोर्ट दर्ज कर ली। पीड़िता का कहना है कि उसकी बहन निर्मला के तेज बुखार था। ऐसे में पेट का ऑपरेशन करना गलत था। बहन के पेट में चीरा लगा था, इससे यह साफ है कि डॉक्टरों ने मरीज निर्मला सरोज के अंग निकाले गये, जिससे उसकी मौत हुई।
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