कैंडिडा ऑरिस पिछले 8 वर्षो से भारत में है मौजूद

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लखनऊ। कैंडिडा ऑरिस नाम का जानलेवा फंगस विश्वस्तर पर को क्लीनिकल क्षेत्र को चुपचाप अपनी चपेट में ले रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार सबसे बड़ी बात यह है कि दवाएं बहुत मंहगी है अौर यह भी तय नहीं रहता है कि मरीज पर असर करेगी कि नहीं ।

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शरीर में ऐसे फैलता यह फंगस………….

कैंडिडा ऑरिस फंगस शरीर में प्रवेश करने पर ब्लडस्ट्रीम के जरिए फैलता है। डाक्टरों की माने तो इससे प्रभावित मरीज का बचना मुश्किल होता है। इस फंगस पर ज्यादातर ऐंटीफंगल दवाइयां बेअसर हैं। खतरनाक बात यह है कि मरीज की मौत के बाद भी यह जिंदा रहता है। कैंडिडा ऑरिस के मामले भारत में पिछले आठ वर्षो से सामने आ रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार यह नया फंगस चिंता का विषय बन चुका है, ऐसा इसलिए क्योंकि इस पर दवाइयां भी ज्यादातर बेअसर हैं जिस वजह से यह जानलेवा है। खास बात यह है कि मरीज की मौत के बाद भी यह फंगस जिंदा रहते हुए उसके आसपास की हर चीज पर मौजूद रहता है। कैंडिडा ऑरिस नाम का यह वायरस जहां दुनिया के लिए एक मिस्ट्री बना हुआ है वहीं भारत इससे पिछले आठ वर्ष से जूझ रहा है।

खतरनाक घोषित किए जा चुके कैंडिडा ऑरिस के केस भारत मेंवर्ष 2011 से सामने आ रहे हैं, कई अध्ययन के जरिए यह जानकारी सामने आ सकी है। हाल ही में ऐम्स ट्रॉमा सेंटर के डॉक्टरों द्वारा मरीजों की प्रोफाइल पर की गई स्टडी में यह बात सामने आई कि अस्पताल में वर्ष 2012 से 2017 के बीच भर्ती हुए मरीजों में से करीब हर 10 मामलों में से दो मामले कैंडिडा ऑरिस के थे।

वर्ष 2011 में देश के 27 मेडिकल और सर्जिकल आईसीयू में इस फंगस को लेकर मल्टी-सेन्ट्रिक ऑब्जर्वेशनल स्टडी की गई थी। चंडीगढ़ का द पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन ऐंड रिसर्च इसका कॉर्डिनेटिंग सेंटर था। स्टडी की रिपोर्ट साल 2014 में प्रकाशित की गई थी। रिपोर्ट में सामने आया कि अप्रैल 2011 से सितंबर 2012 के बीच भर्ती मरीजों में से 6.51 प्रतिशत कैंडिडा ऑरिस से संक्रमित थे। इसके इन्फेक्शन को सिर्फ 27.5 मामलों में ही ठीक किया जा सका, जबकि 45 मरीजों को बचाया नहीं जा सका। उनकी मौत 30 दिनों के अंदर हो गई।

द इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने वर्ष 2017 में सभी अस्पतालों को अडवाइजरी जारी की थी। इसमें कहा गया था कि कैंडिडा ऑरिस नाम के वायरस से होने वाली मौतों का आंकड़ा 33 से 72 प्रतिशत है। अस्पतालों को सुझाव दिया गया कि जो मरीज इस फंगस के पॉजिटिव पाए जाते हैं उन्हें अलग कमरों में या फिर इससे पीड़ित अन्य मरीजों के साथ अलग रखा जाए।

यहां मिला था पहला मरीज

‘कैंडिडा ऑरिस’ का पहला मरीज ब्राुकलिन में मिला था, रिपोर्ट के मुताबिक, माउंट सिनाई हॉस्पिटल फॉर ऐब्डॉमिनल सर्जरी के दौरान एक व्यक्ति के ब्लड टेस्ट से यह बात सामने आई थी कि वह एक फंगस से पीड़ित है. जब डॉक्टरों ने इसकी तह तक जाना चाहा तो पता चला कि यह कैंडिडा ऑरिस है और एक जानलेवा फंगस है और मौत के बाद भी इंसान के शरीर से खत्म नहीं होता है. बुजुर्ग के टेस्ट के बाद डॉक्टरों ने उसे इन्टेन्सिव केयर यूनिट में शिफ्ट किया था. इसके बाद उन्हें कई और ऐसे ही केस सामने आए।

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