लखनऊ। बच्चों का ज्यादातर समय अब मोबाइल व कम्प्यूटर स्क्रीन के सामने गेम या कोई प्रोजेक्ट या फिर ऑनलाइन क्लासेस करने में गुजर जाता है। इस कारण बच्चों की शारीरिक गतिविधियां घटती जा रही हैं। इस कारण बच्चे ऑटिज्म की चपेट में आने की संभावनाएं बढ़ती जाती हैं।
इसे ऑटिज्म इस्प्रैक्ट्रम डिसआर्डर कहते हैं। सही समय पर इलाज न मिलने से बच्चे गंभीर रूप से बीमार हो रहे हैं। चलने-फिरने व रोजमर्रा के काम तक करने दिक्कत होने लगती हैं। बच्चों की बेहतर स्वास्थ्य के लिए उन्हें मोबाइल से दूर रखें। घर के बाहर खेलने के लिए प्रेरित करें। यह परामर्श बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अनुराग कटियार ने बृहस्पतिवार को इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) की 45 वीं वर्षगांठ गोमतीनगर स्थित इंदिरागांधी प्रतिष्ठान में यूपेडिकॉन 2024 में दी।
कार्यक्रम के आयोजक सचिव डॉ. अनुराग कटियार ने कहा कि 69 बच्चों में एक ऑटिज्म का शिकार है। यह समस्या धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। बच्चे घंटों मोबाइल व कम्प्यूटर स्क्रीन के सामने बैठे रहते हैं।
ऐसे में शारीरिक गतिविधियां लगभग बंद हो गई हैं। एक साल का बच्चा भी मोबाइल देख रहा है। इसकी वजह से बच्चों में चलने, सोचने, समझने, छूकर महसूस करने की आदत नहीं पड़ रही है। उसमें सिर्फ स्क्रीन देखने का विकास हो रहा है। इसका असर बच्चों के शारीरिक व मानसिक स्तर पर भी पड़ रहा है। उनमें ऑटिज्म जैसे लक्षण विकसित हो रहे हैं। समय पर इलाज न मिलने से आगे चलकर बच्चे ऑटिज्म की गिरफ्त में आ रहे हैं।
मुख्य आयोजक अध्यक्ष डॉ. संजय निरंजन ने कहाकि लक्षणों को पहचान कर तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। फिजियोथेरेपी, आकुपेशनल थेरेपी व दवाओं से बच्चे को काफी हद तक सामान्य जीवन दिया जा सकता है।
डॉ. टीआर यादव ने कहा कि न्यू बार्न इंटेसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) की सेवाएं बेहतर हुई हैं। इससे समय से पूर्व जन्मे बच्चे, कमजोर व कम वजन के बच्चों को बचाना आसान हो गया है। उम्र बढ़ने के साथ इन बच्चों के पैरों में लकवा, दिमागी रूप से कमजोर होना व झटके आने जैसी बीमारियों की आशंका अधिक रहती है। ऐसे बच्चों की सेहत की निगरानी जरूरी है।
ताकि लक्षण नजर आते ही तुरंत इलाज मुहैया कराया जाए। इससे काफी हद तक बच्चों को सामान्य जीवन दिया जा सकता है।