लखनऊ। धूम्रपान के साथ बढ़ता वायु प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर दिक्कत पैदा कर रहा है। इससे श्वसन तंत्र की बीमारियों खास कर क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) को और बढ़ा रहा है। इस बीमारी के रोकथाम के लिए आवश्यक है। इसके लिए पहले तंबाकू पर रोक लगायी जाये। इसके अलावा वायू प्रदूषण को कम करने के लिए भी प्रयास होते रहने चाहिए । वरना सीओपीडी से होने वाली मौतों को नहीं रोका जा सकता। यह बात किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभाग प्रमुख प्रो.वेद प्रकाश ने विश्व सीओपीडी दिवस की पूर्व संध्या पर दी।
मंगलवार को विभाग में आयोजित पत्रकार वार्ता में डॉ.प्रकाश ने बताया कि प्रदूषण या धूम्रपान से फेफड़ा सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है।
सीओपीडी दुनिया में होने वाली मौतों का तीसरा बड़ा कारण है। भारत में करीब 6 करोड़ लोग इस बीमारी से पीडित हैं। टीबी मरीजों के मुकाबले सीओपीडी से ग्रसित मरीजों की संख्या कहीं ज्यादा है। इस बीमारी के होने का प्रमुख कारण तंबाकू को माना जाता है।
डॉ.वेद प्रकाश ने बताया कि कोरोना काल में सबसे ज्यादा वायरस की चपेट में सीओपीडी के मरीज आये। इसलिए सांस फूलने की समस्या होने पर तत्काल डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए। इसके साथ ही यदि धूम्रपान का सेवन कर रहे हैं,तो तत्काल इससे दूरी बना लें। उन्होंने बताया कि इस बीमारी में सांस लेने वाली नलियों में सूजन आ जाती है। बीमारी के शुरूआत में पीड़ित व्यक्ति को सांस फूलने की दिक्कत होती है। बीमारी बढ़ने पर आराम करने के दौरान भी सांस लेने में दिक्कत होती है।
डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि पूरी दुनिया में 15 लाख लोग टीबी की बीमारी से अपनी जांन गवांते हैं,जबकि सीओपीडी से करीब 30 लाख लोगों की जान चली जाती है। इसलिए सीओपीडी को हल्के में नहीं लेना चाहिए। लक्षण होने पर तत्काल डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि टीबी ठीक होने वाली बीमारी है,लेकिन सीओपीडी ठीक होने वाली बीमारी नहीं है। इसका लक्षणों के आधार पर इलाज किया जाता है। यह बीमारी मधुमेह व ब्लड प्रेशर की तरह है। एक बार हो जाये तो चिकित्सक की सलाह पर लगातार इलाज लेना पड़ता है।