लखनऊ। बढ़ते प्रदूषण कारण युवा भी क्रानिक ऑब्स्ट्रेक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) से पीड़ित हो रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार दस से 15 वर्ष पहले इस बीमारी से बुजुर्ग मरीज ही चपेट में आते थे। यह जानकारी किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पल्मोनरी एंड क्रिटकल केयर मेडिसिन विभागाध्यक्ष डा. वेद प्रकाश ने बुधवार को आयोजित पत्रकार वार्ता में दी। वह शताब्दी अस्पताल में आयोजित सीओपीडी जागरुकता कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने बताया कि अमेरिका की एक शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि घर में क्वायल जलाकर सोना स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। फिर यहां 90 प्रतिशत लोग क्वायल जलाकर कमरे में सोते है। ट्रामा सर्जरी विभागाध्यक्ष डा. संदीप तिवारी ने सीओपीडी जैसी बीमारी को रोकने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि राजधानी में मेट्रो चल रही है। ऐसे में यहां धुआं देने वाले वाहनों की संख्या कम की जा सकती है। उन्होंने ई रिक्शा, इलेक्ट्रिक वाहन तथा सीएनजी के प्रयोग को ज्यादा करने का परामर्श दिया। उन्होंने कहा कि इस बीमारी से पीड़ित मरीज को अपने डाक्टर से सीओपीडी एक्शन प्लान लेना चाहिए। फिर भी अगर कोई दिक्कत होती है तो अपने या विशेषज्ञ डाक्टर से सलाह लें।
डा. वेद प्रकाश ने बताया कि सीओपीडी के तहत कई बीमारियां आती हैं, जैसे एम्फाईसीमा, क्रोनिक ब्राॉकाइटिस आदि। इस बीमारी में सांस की नलियां सिकुड़ने के कारण उसमें सूजन आ जाती है। इसकी शुरुआत सांस फूलने से होती है। फेफड़ा संक्रमित होने लगता है, समय पर निदान न होेने पर लंग कैंसर हो सकता हैं। इसकी वजह से मांसपेशियों का कमजोर होने के साथ ही आक्सीजन की कमी बन जाने पर दिमाग और हार्ट का फेल होने की भी आशंका रहती है। यह विश्व में होने वाली कुल मौत में तीसरी बड़ी वजह है।
अगर आंकड़ों को देखा जाए तो करीब 31 लाख लोगों की मृत्यु सीओपीडी से होती है। वर्ष 1990 से 2016 के बीच 29 प्रतिशत सीओपीडी के मरीज बढ़ गए हैं। इसके मुख्य लक्षण है- श्वांस फूलना, बलगम आना, खांसी आना, छाती में जकड़न, सींटी बजना आदि दिखे तो विशेषज्ञ डाक्टर से परामर्श लेना चाहिए। इन लक्षणों को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए। डा. वेद ने बताया कि धूम्रपान, तम्बाकू का सेवन, पर्यावरण प्रदूषण, चूल्हे पर खाना बनाना आदि से होता है।
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