न्यूज। कोरोना वायरस ‘कोविड-19″ मरीजों को तपेदिक से बचाव करने वाली बीसीजी वैक्सीन दिए जाने से इनके ठीक होने संबंधी दावों पर शोध अगले एक हफ्ते में शुरू कर दिया जाएगा। यह जानकारी आईसीएमआर के वैज्ञानिक डॉ रमन आर गंगाखेड़कर ने कहा है ने शुक्रवार को यहां संवाददाता सम्मेलन में दी। उन्होंने बताया कि जब बच्चा पैदा होता है तो जन्म के समय उसे यह वैक्सीन दी जाती है और यह उसे भविष्य मे तपेदिक के प्रति ‘आंशिक प्रतिरोधकता” प्रदान करती है। इसे एक बेहतर ‘इम्यूनोमॉडयूलेटर” कहा जाता है लेकिन इसका असर किशोरावस्था तक ही रहता है। मगर अभी तक ऐसा कोई भी प्रामाणिक शोध नहीं हुआ है कि यह वैक्सीन कोविड-19 मरीजों को सुरक्षा प्रदान करेगी या नहीं और इसी की जांच करने के लिए आईसीएमआर की तरफ से अगले हफ्ते एक शोध किया जाएगा।
जब तक इस शोध के नतीजे सामने नहीं आ जाते हैं तब तक इस वैक्सीन को स्वास्थ्य कर्मियों की दिए जाने की सलाह कतई नहीं दी जा सकती है। कोरोना वायरस के रूप बदलने (म्यूटेशन) की क्षमता के एक सवाल पर उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण के बाद कोरोना के तीन प्रकारों का पता चला है और ये सभी स्ट्रेन एक ही जैसे हैं और अपने देश में भी पाए जाते हैं, बस इनमें क्षेा विशेष के आधार पर थोड़ा बहुत अंतर देखा जा सकता है लेकिन इनका मूल स्वरूप एक जैसा ही है।
उन्होंने बताया कि शुरू में जब भारत में कोरोना संक्रमित लोग पाए गए थे और वे चीन से आए थे जो इस विषाणु की जीनोम सिक्वेंसिंग से पता चला कि वह वुहान में पाए जाने वाले विषाणु जैसा ही था। जो लोग ईरान से आए थे, उनमें भी चीनी विषाणु जैसी ही आकृति देखने को मिली थी और जो लोग इटली से आए थे, उनमें यूरोप और अमेरिका के कोरोना वायरस जैसा रूप देखने को मिला था। उन्होंने इस बात को पूरी तरह खारिज कर दिया कि यह वायरस जल्दी ही रूप बदल लेता है।
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