ब्लड का क्रास मैचिंग टेस्ट सही होना आवश्यक : डा. तूलिका

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ट्रांसकॉन 2023 की 48 वार्षिक कान्फ्रेंस ऑफ इंडियन सोसाइटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन इम्यूनोहिमेटोलॉजी

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लखनऊ। रोड एक्सीडेंट, सर्जरी या फिर एनीमिया पीड़ितों की जिंदगी बचाने के लिए ब्लड चढ़ाने की आवश्यकता है। ब्लड चढ़ाने से ब्लड की क्रास मैचिंग टेस्ट महत्वपूर्ण होता है। इस प्रक्रिया में सैंपल ब्लड व ब्लड बैंक के ब्लड यूनिट की आपस में मिलाकर क्रास टेस्ट किया जाता है। इस टेस्ट में जरा सी लापरवाही मरीज की जान खतरे में पड़ सकती है। यह बात केजीएमयू ब्लड एंड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की प्रमुख डॉ. तूलिका चन्द्रा ने बुधवार को ट्रांसकॉन 2023 की 48 वार्षिक कान्फ्रेंस ऑफ इंडियन सोसाइटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन इम्यूनोहिमेटोलॉजी की कार्यशाला को संबोधित करते हुए कही। कार्यशाला में मुख्य अतिथि प्रदेश मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने कहा कि जरूरतमंदों की जिंदगी बचाने के लिए स्वैच्छिक रक्तदान करें।

विशिष्ट अतिथि चिकित्सा शिक्षा प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा ने कहा कि डाक्टर व पैरामेडिकल को नयी तकनीक से अपडेट रहना चाहिए। इसके अलावा लोगों में स्वैच्छिक रक्तदान के प्रति भ्रामकता को दूर करना होगा।
बुधवार को केजीएमयू के कलाम सेंटर में आयोजित कार्यशाला में डॉ. तूलिका चन्द्रा ने कहा कि मरीज व ब्लड बैंक में रखे ब्लड का क्रास मैच मानकों के अनुसार ही होना चाहिए। इसमें किसी भी तरह की लापरवाही से मरीज की जिंदगी खतरे में आ सकती है। उन्होंने कहा कि इस टेस्ट में ब्लड ग्रुप में एंटीबाडी समेत दूसरे एंटीजेन की जांच की जाती है। उन्होंने कहा कि न्यूक्लीयर एसिड टेस्ट (नेट) से टेस्ट किया गया ब्लड अधिक सुरक्षित है। इसमें ब्लड में कम दिनों का भी इफेक्शन के अलावा वायरस और बैक्टीरिया को पकड़ा जा सकता है।

मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने कहा कि स्वैच्छिक रक्तदान के प्रति हालांकि धीरे-धीरे लोगों में जागरुकता बढ़ रही है। परन्तु बढ़ते ब्लड डिमांड को देखा जाए तो यह बहुत कम है। शहरी व ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की इस नेक काम में भागीदारी जरूरी है। उन्होंने कहा कि वह खुद नियमित ब्लड डोनेशन करते थे। इससे आंतरिक खुशी मिलती है। दूसरों की जिंदगी बचाने का जज्बा भी बढ़ता है।
केजीएमयू हिमैटोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ. एके त्रिपाठी ने कहा कि ब्लड एंड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग का काम सिर्फ ब्लड देना ही नहीं है। बल्कि मरीजों की जीवन सुरक्षित रखने की भी है। उन्होंने कहा कि पॉलीसाइथीमिया नाम का ब्लड कैंसर में मरीज का हीमोग्लोबिना 20 से 22 ग्राम तक पहुंच जाता है, जबकि सामान्य तौर पर हीमोग्लोबिन 13 से 16 के बीच होता है। ऐसे मरीजों में ब्लड गाढ़ा हो जाता है। समय-समय पर ब्लड निकलवाना पड़ता है। यह कार्य भी ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग ही कर रहा है।
कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानंद ने कहा कि इस तरह की कार्यशाला से नई तकनीक सीखने का अवसर मिलता है। जो मरीजों के इलाज में काम आ सकती है। इस मौके पर पीजीआई प्लास्टिक सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजीव अग्रवाल समेत अन्य लोगों को सम्मानित किया गया।

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