लखनऊ। थैलेसीमिया मरीजों में आयरन मैनेजमेंट बहुत आवश्यक होता है। समय पर दवा अगर नहीं दी जाए आैर इसमें लापरवाही नही बरती जाए। यह जानकारी डा. बीपी चौधरी ने शनिवार को किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के कलाम सेन्टर में आयोजित वार्षिक थैलेसीमिया अपडेट कार्यक्रम में दी। कार्यक्रम का शुभारम्भ कुलपति डॉ. एमएलबी भट्ट ने किया। इसके अलावा केजीएमयू में जल्द ही साइटोजेनेटिक्स यूनिट शुरू की जायेगी।
डा. चौधरी ने कहा कि बार-बार ब्लड चढ़ने से हार्ट, लिवर सहित अन्य अंगों में आयरन का दवाब बनने लगता है आैर यह खराब होने लगते है। इसके अलावा केजीएमयू में जल्द ही साइटोजेनेटिक्स यूनिट शुरू की जायेगी। इस यूनिट के शुरू हो जाने से प्रदेशभर से आने वाले थैलेसीमिया पीड़ित मरीजों का प्रीनेटेल डायग्नोसिस टेस्ट मुफ्त हो सकेगा।
प्रवीण आर्य कार्यक्रम में कहा कि थैलेसीमिया एक अनुवांशिक रोग है । इस बीमारी का मुख्य कारण रक्तदोष होता है। यह बीमारी बच्चों को अधिकतर ग्रसित करती है तथा उचित समय पर उपचार न होने पर बच्चों की मृत्यु तक हो सकती है। इस बीमारी के शिकार बच्चों में रोग के लक्षण से 4 या 6 महीने में ही नजर आने लगते है। इस रोग से ग्रसित बच्चें को बचाने के लिए औसतन तीन सप्ताह में एक बोतल खून चढ़ाना अनिवार्य हो जाता है।
कार्यक्रम में केजीएमयू के पैथालोजी विभाग, क्लीनिकल विभाग, बाल रोग विभाग, साइटोजेनेटिक्स विभाग, सेन्टर फार एडवान्स रिसर्च (सीएफएआर) और थैलेसीमिया इडिंया सोसाइटी ने डाक्टरों व अधिकारियों ने भाग लिया, जिसमें को डा अमिता पांडे, डा निषांत वर्मा, डॉ. एसपी वर्मा ने भी थैलेसीमिया के अलग-अलग पहल के बारे में बताया। केजीएमयू की डा. नीतू निगम ने बताया कि केजीएमयू में सप्ताह में सोमवार और वृहस्पतिवार को थैलेसीमिया की ओपीडी होती है। यहाँ पर उत्तर प्रदेश एन.एच.एच. के सहयोग से अब थैलेसीमिया बच्चों का इलाज केजीएमयू में मुफ्त में संभव है। उन्होंने बताया कि यूपी में 1475 थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों का इलाज किया जा रहा है।