बिगड़ी लाइफ स्टाइल युवा वर्ग में बढ़ा रही डायबिटीज

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लखनऊ। बदलती लाइफ स्टाइल, खानपान से कम उम्र में युवा डायबिटीज की चपेट में आ रहे हैं। डायबिटीज होने के कारण युवा वर्ग में ग्लूकोमा की समस्या भी हो रही है। लोहिया संस्थान की ओपीडी में देखा जाए तो प्रतिदिन ग्लूकोमा के आठ से दस मरीज पहुंच रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार इनमें आधे मरीज डायबिटीज पीड़ित होते हैं। यह बात डा. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के नेत्र विज्ञान विभाग की डॉ. शिखा अग्रवाल ने कही।

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अंतरराष्ट्रीय विकलांग व्यक्ति दिवस (आईडीपीडी) पर लोहिया संस्थान के नेत्र विज्ञान विभाग की ओर से संगोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि संस्थान निदेशक डॉ. सीएम सिंह थे। संगोष्ठी में निदेशक सहित सीएमएस डॉ. एके सिंह, डॉ. वीरेंद्र सिंह गोगिया, सीएमई की चेयरपर्सन व सर्जरी विभाग प्रमुख डॉ. प्रियंका राय, डॉ. प्रीति गुप्ता, डॉ. प्रोलिमा, डॉ. शबरी पाल, डॉ. इंदु अहमद आदि ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की। डॉ. प्रियंका और डॉ. शिखा ने बताया बताया कि नेत्र विभाग की ओपीडी में प्रतिदिन लगभग 150 मरीज आते हैं। इनमें से आठ से 10 ग्लूकोमा और उसके आधे करीब डायबिटीज पीड़ित होते हैं।

निदेशक डॉ. सीएम सिंह ने कहा कि आईडीपीडी विकलांग लोगों के अधिकारों और कल्याण को बढ़ावा देता और जागरूकता बढ़ाता है, जबकि और 7.9 करोड़ लोग दृष्टिबाधित हैं। कम दृष्टि दोष किसी भी उम्र में हो सकता है। कम दृष्टि वाले लोगों को पूरी तरह से दिखने की समस्या नहीं होती है, इसलिए उन्हें बची हुई दृष्टि का बेहतर उपयोग करने में सहयोग करना महत्वपूर्ण है। निदेशक ने नेत्र विभाग में नई मशीनें आदि को बढ़ाने के लिए की दिशा में काम करने का आश्वासन दिया।

डॉ. शिखा ने बताया कि लोहिया संस्थान में हाईटेक तकनीकी से जांच की जाती है, जिन मरीजों की रोशनी जा चुकी है। उनको मैग्नीफाई ग्लासेस लगाया जाता है। साथ ही जीवनयापन के लिए लाठी लेकर चलना, ब्रोल लिपि, कलर पहचानना आदि सिखाया जाता है। जो लोग पेपर नहीं पढ़ सकते, बॉथरूम जाने में दिक्कत है। ऐसे लोगों को लेटेस्ट तकनीकी की डिवाइस लगायी जाती है, जिससे उनको अपने काम करने में बहुत आसानी होती है। उन्होंने बताया कि यह डिवाइस लगभग 40 हजार रुपए से शुरू होती है। भारत में कम दृष्टि के मुख्य कारण ग्लूकोमा, वयस्कों में मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी हैं। बच्चों में कॉर्टिकल दृष्टि हानि, एम्ब्लियोपिया, समय से पहले रेटिनोपैथी और वंशानुगत रेटिनल विकार मुख्य हैं।

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