नयी दिल्ली – देश में इस समय लाखों लोग नेत्रदान के जरिए आंखों की रोशनी पाने का इंतजार कर रहे हैं लेकिन कई प्रकार की भ्रांतियों के चलते आज भी लोग उतनी संख्या में नेत्रदान के लिए आगे नहीं आ रहे हैं जितना जरूरत है । सच्चाई यह है कि मधुमेह, अस्थमा और ब्लड प्रेशर के मरीज भी आसानी से नेत्रदान कर सकते हैं । डाक्टरों का कहना है कि लोग सांस्कृतिक रीति रिवाजों, परंपराओं और भ्रांतियों के चलते नेत्रदान को जरूरी तव्वजो नहीं देते । इसका परिणाम आज यह हुआ है कि लाखों लोग विभिन्न अस्पतालों में नेत्रदान के इंतजार में हैं।
सर गंगाराम अस्पताल की नेत्र चिकित्सक डा इकेडा लाल कहती हैं, ”एक बात तो लोगों को स्पष्ट रूप से बतायी जानी जरूरी है, वह यह कि मधुमेह, अस्थमा और ब्लड पे्रेशर यानी उच्च रक्तचाप से पीडि़त मरीज भी नेत्रदान कर सकते हैं । हालांकि यह नेत्रदान करने वाले व्यक्ति की आंखों को किसी कारणवश मृत्यु होने पर भी निकाला जाता है ।
वह कहती हैं, ” रेटिना की बीमारी या आप्टिक नर्व की समस्या से पीडि़त लोग भी नेत्रदान कर सकते हैं। केवल उसी व्यक्ति की आंखों को नेत्रदान के तहत इस्तेमाल नहीं किया जा सकता जिसकी मौत किसी अज्ञात कारण से हुई है या वह एड्स, हेपेटाइटिस या सेप्टिसिमिया के चलते मरा है। हमारे देश में एक लाख 20 हजार लोग ऐसे हैं जो कॉर्निया की बीमारी के चलते अपनी आंखों की रोशनी गंवा बैठे हैं तथा 60 लाख 80 हजार लोग ऐसे हैं जिनकी दृश्यता 6 6 से भी कम है ।
डेढ़ करोड़ अंधता के शिकार भारत में –
यदि आंकड़ों पर भरोसा किया जाए तो दुनियाभर में अंधता के शिकार चार करोड़ 50 लाख लोगों में से डेढ़ करोड़ भारत में हैं । दुखद स्थिति यह है कि इनमें से 75 फीसदी लोगों की अंधता उस ेणी में आती है जिससे बचा जा सकता है लेकिन देश में नेत्रदानकर्ताओं की भारी कमी के कारण इन लोगों की नेत्रहीनता की स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहती है या ठीक से उनका उपचार नहीं हो पाता ।
डाक्टरों का कहना है कि देश में हर साल दो लाख कार्निया की जरूरत होती है लेकिन केवल 44, 806 कार्निया की एकत्रित किए जाते हैं । इनमें से भी केवल 46 फीसदी 20, 632 कार्निया का ही प्रतिरोपण किया जा सकता है क्योंकि बाकी 54 फीसदी प्रतिरोपण के मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं । इसलिए कार्निया प्रतिरोपण के इंतजार में मरीजों की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही है ।
कॉर्निया एंड रिफरेक्ट्रिव सर्जरी स्पेशलिस्ट डा ़ इकेडा ने बताया कि लोग अपने जीते जी नेत्रदान की प्रतिबद्धता व्यक्त कर सकते हैं या मृत्यु के बाद उनके परिजन इस संबंध में फैसला कर सकते हैं लेकिन मृत्यु जैसे विकट भावुक समय में मृतक के परिजन को इस बारे में तैयार करने के लिए व्यापक जागरूकता फैलाए जाने की जरूरत है ।
वह बताती हैं कि मृत्यु के तुरंत बाद यदि परिजन नेत्रदान का फैसला लेते हैं तो मृतक की आंखों को किसी साफ नम कपड़े से ढक देना चाहिए और शव को सीधे पंखे के नीचे नहीं रखना चाहिए क्योंकि हवा से आंखों के टिश्यू सूख जाते हैं । इसके बाद जितना जल्द संभव हो समीप के नेत्रदान केंद्र को फोन करना चाहिए।
मृत्यु के छह घंटे के भीतर कॉर्निया को निकालने की प्रक्रिया पूरी करनी होती –
उन्होंने भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास करते हुए बताया कि नेत्रदान से शव का चेहरा यथावत रहता है और इससे अंतिम संस्कार में भी कोई देरी नहीं होती क्योंकि मृत्यु के छह घंटे के भीतर कॉर्निया को निकालने की प्रक्रिया पूरी करनी होती है ।
आंख की सबसे उपरी पारदर्शी परत जिसे कार्निया कहा जाता है उसका मरीज में प्रतिरोपण किया जाता है तथा आंख के बाकी हिस्से का इस्तेमाल चिकित्सा शोध के लिए किया जाता है । नेत्रदान से कॉर्निया के चलते अंधता झेलने वाले लोगों को रौशनी प्रदान की जाती है ।
इकेदा बताती हैं कि मोतियाबिंद और ग्लूकोमा के बाद कार्निया से जुड़ी अंधता नेत्रहीनता का दुनिया में सबसे बड़ा कारण है ।
(भाषा )