लखनऊ। डा. राममनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के मातृ एवं शिशु रेफरल सेंटर के डाक्टरों ने एक नवजात की एच टाइप ट्रेक्यिो ओयसोफेजियल फिस्चुला की सर्जरी में आपस में चिपकी सांस और आहार नली को अलग किया। आठ दिन के इस नवजात की हालत में सुधार है। अब वह दूध पीने लगा है। विशेषज्ञों के अनुसार करीब 10 हजार बच्चे में किसी एक बच्चे को यह बीमारी होती है।
चिनहट निवासी रेखा ने फरवरी में शिशु को जन्म दिया। मां रेखा ने देखा कि दूध पीने के बाद बच्चे की सांस फूल रही थी आैर उसका पेट भी फूल जाता था। वहां पर डाक्टरों ने तत्काल लोहिया संस्थान रेफर कर दिया। यहां पर मातृ एवं शिशु रेफरल सेंटर में आठ फरवरी को आए शिशु की जांच कराई गई। इसके बाद एक्सरे में कुछ स्पष्ट न दिखने पर सीटी स्कैन कराया। जिसमें पता चला कि शिशु की सांस व भोजन नली आपस में जुड़ी हुई है आैर दूध का रिसाव सांस नहीं में हो रहा है। इस वजह से बच्चा नीला पड़ रहा है। इन दोनों नलियों के ऊपर से ब्लड की बड़ी धमकी भी लगी हुई जा रही थी। चूंिक शिशु मात्र दो किलों का था। इस लिए सर्जरी करने में एनेस्थिसिया देने बहुत खतरा था।
इसके बाद भी माता पिता ने सर्जरी करने की अनुमति दे दी। सर्जरी में गले के पास चीरा लगाकर दोनों नलिकाओं को अलग किया गया। इस दौरान बच्चे को वेंटीलेटर पर रखा गया। करीब 90 मिनट की सर्जरी में किसी तरह का रक्तस्त्राव नहीं होने पाया। सर्जरी में करीब आठ दिन बाद उसे डिस्चार्ज कर दिया गया। अब वह पूरी तरह से स्वस्थ्य है। उसे सांस लेने में भी दिक्कत नहीं है। सर्जरी करने वाली टीम में डा. श्रीकेश सिंह, डा. तनवीर रोशन, डा. केके यादव, एनेस्थिसिया विभाग से डा. शिल्पी मिश्रा, डा. रवि डा. संदीप, सचिन ,किरन व गौरव आदि शामिल थे। डाक्टरों की इस उपलब्धि पर निदेशक प्रो. एके त्रिपाठी ने बधाई दी। उन्होंने कहा कि जल्द ही संस्थान विकृतियों के इलाज में नई तकनीकी सुविधाओं से भी लैश होगा।
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