केजीएमयू: डा. केपी सिंह बर्खास्त, डा. आशीष बाखलू निलम्बित, 113 को प्रमोशन

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लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद की शुक्रवार को हुई बैठक में कहीं खुशी कहीं गम वाला माहौल रहा। बैठक काफी हंमागादार रही। बैठक में प्रमोशन के अलावा बर्खास्तगी, निलम्बन आैर जांच के निर्णय पर हंगामा भी मचा। इस बैठक में 131 संकाय सदस्यों को प्रमोशन मिला। वही निलंबित चल रहे माइक्रोबायोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रो. डा. केपी सिंह को बर्खास्त करने तथा डा. आशीष वाखलु को निलंबित करा गया।

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शाम तक कार्यपरिषद की जानकारी देने से बचते रहे मीडिया सेल के प्रवक्ता डा. सुधीर की ओर से बिना हस्ताक्षर के बैठक के निर्णयों की जानकारी दी गयी। दी गयी जानकारी के अनुसार केजीएमयू में वर्ष 2014 में राज्य की सीपीएमटी प्रवेश परीक्षा कराई गई थी। डा. के पी सिंह पर आरोप था कि परीक्षार्थियों एवं उनके अभिभावकों को यह विश्वास दिलाया था कि वे उनका चयन टेस्ट में करा देंगे। इसके लिये उन्होनें अभ्यर्थियों से चिकित्सा विश्वविद्यालय के किसी अन्य शिक्षक के कक्ष का उपयोग (उस शिक्षक की अनुपस्थिति मे) करते हुये अवैध वसूली भी की। इस प्रकरण में रिपोर्ट दर्ज भी हुई थी। इसको आधार बनाते हुए उन्हें 17 अक्टूबर 2014 को निलंबित कर दिया गया था।

आज जांच कमेटी की रिपोर्ट के बाद उन्हें शुक्रवार को बर्खास्त कर दिया गया। इसके अलावा आरोप पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग मे प्रो. आशीष वाखलू के खिलाफ आईटी सेल में स्वयं की कंपनी बनाकर साफ्टवेयर आपूर्ति करने, विश्वविद्यालय की धनराशि का दुरुपयोग करने का आरोप लगा था। छह सदस्यीय अनुशासनात्मक समिति ने जांच की। उन्हें आरोप पत्र दिया गया। बार- बार पत्र भेजने के बाद भी उन्होंने जवाब नहीं दिया। जांच कार्य में सहयोग नहीं करने के लिए अनुशासनिक समिति ने 30 अगस्त को उन्हें निलंबित करने की संस्तुति की, जिसे कार्यपरिषद में मंजूरी दे दी गई। उधर डा. केपी सिंह का पक्ष जानने का प्रयास किया गया, तो उनका मोबाइल नंबर बंद मिला।

जबकि डा. आशीष वाखलु ने कहा कि उच्च न्यायालय ने 20 दिसंबर 2018 तो रिट याचिका संख्या 35784 पर फैसला दिया था कि डा. वाखलु पर जांच हो सकती है, लेकिन कोर्ट का फैसला आने के बाद ही अंतिम फैसला लिया जाए। उनका दावा है कि केजीएमयू प्रशासन ने निलंबन की कार्रवाई करके कोर्ट केआदेश की अवहेलना की है, जिस आरोप की जांच हो रही है, उसमें सक्षम अधिकारी के अनुमोदन और वित्त अधिकारी के हस्ताक्षर से भुगतान हुआ है। यह कार्रवाई पूरी तरह से दुर्भावना से की गई है। मुझे न्यायालय पर भरोसा है।

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