सड़क पर पुलिस चेकिंग के दौरान अकसर लोग बाइक लेकर दाएं-बाएं भागते नजर आते हैं। इसकी वजह यह है कि उनके पास डीएल यानी ड्राइविंग लाइसेंस ही नहीं होता है। पकड़े जाने पर जुर्माना भी हो जाता है, इसके बाद भी लोग डीएल नहीं बनवाते हैं। उन्हें लगता है कि यह मुसीबत का काम है। इसके लिए बहुत चक्कर लगाने पड़ेंगे। दलाल से बनवाओ तो वह बहुत पैसे मांगता है।
आम तौर पर देखा जाता है कि आरटीओ ऑफिस में लोगों को भीड़ लगी रहती है। इससे लोगों को लगता है कि दोपहिया और चारपहिया वाहन का डीएल बनवाने में काफी परेशानी और समय बर्बाद होता है। मगर ऐसा बिलकुल भी नहीं है। आज हम आपकों बताते है कि कैसा बनता है डीएल।
डीएल बनवाने की बहुत ही सरल प्रक्रिया है –
राजधानी में दो जगह पर आरटीओ ऑफिस बने हुए हैं एक महानगर में और दूसरा ट्रांस्पोर्टनगर में। ट्रांस्पोर्टनगर में बने दफ्तर के एआरटीओ (प्रशासन) संजय कुमार झा ने बताया कि डीएल बनवाने की बहुत ही सरल प्रक्रिया है। डीएल दो चरणों में बनता है पहला लर्निंग और दूसरा प्रमानेंट। लर्निंग के लिए दो फार्म भरे जाते हैं। फाम-1 जो स्वास्थ्य का और फार्म-2 लर्निंग डीएल का। इसमें पहचानपत्र, निवास प्रामाणपत्र और जन्म प्रमाणपत्र की फोटो स्टेट कापी के साथ मात्र 3०+3० रुपये फीस जमा करनी होती है।
फार्म भरते समय ओरिजनल प्रमाणपत्र लाना अनिवार्य होता है। इसके बाद एक लिखित परीक्षा होती है, जो सड़क नियम पर आधारित होती है। इसमें 16 सवाल के सही जवाबों पर निशान लगाने होते है। 16 से 1० सही जवाब देने वाले को पास करार दिया जाता है। इसके बाद लर्निंग डीएल मिल जाता है। लर्निंग डीएल मिलने के एक माह से छह माह के अंतराल में कभी भी प्रमानेंट डीएल के लिए आवेदन कर सकते हैं।
इस प्रक्रिया के बाद एक ही दिन में डीएल मिल जाता है –
इसमें फार्म-1 और फार्म-4 भर कर 1००+1०० रुपये प्रमानेंट डीएल की फीस और 1०० रुपये टेस्टिंग फीस जमा की जाती है। इसके बाद राइड टेस्टिंग होती है जो संभागीय निरीक्षक (प्राविधिक) लेता है। इसमें वाहन चलाते हुए अंग्रेजी ‘आठ’ आकार पर वाहन चलाना होता है। इसके बाद बायोमेट्रिक हाजिरी होती है, जिसमें अंगूठे की छाप, डिजिटल हस्ताक्षर और फोटो क्लिक की जाती है। इस प्रक्रिया के बाद एक ही दिन में डीएल मिल जाता है। इसकी वैधता 2० वर्ष की होती है।