डीटीआई तकनीक से मस्तिष्क के विकास और बीमारियों का पता लगाना संभव
लखनऊ। गर्भस्थ शिशु के हार्ट डिजीज का सरलता से पता लगाया जा सकता है। गर्भस्थ शिशु की इकोकॉर्डियोग्राम टेस्ट कर 50 से 80 प्रतिशत हार्ट में बन रही असमानताओं की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। विशेषज्ञ डाक्टर गर्भ में ही इलाज कर बीमारी पर भी नियंत्रण पा सकता है। यह जानकारी किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेडियोडायग्नोसिस विभाग के प्रमुख डॉ. अनित परिहार ने शुक्रवार को राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडियन सोसाइटी ऑफ पीडियाट्रिक रेडियोलॉजी की 22 वीं कान्फ्रेंस में दी। कार्यशाला में इनसाइटफुल रेडियोलॉजी विषय पर चर्चा की गयी। केजीएमयू रेडियोडायग्नोसिस विभाग के प्रमुख डॉ. अनित परिहार ने बताया कि गर्भस्थ शिशु में कुछ ऐसे कारण होते है, जिससे हार्ट का विकास नहीं हो पाता है। ऐसे में भ्रूण का इकोकॉर्डियोग्राम टेस्ट कर बीमारी की पहचान कर सकते हैं।
उन्होंने बताया कि 18 से 24 हफ्ते के गर्भस्थ की जांच कर हम शिशु के हार्ट की 50 से 70 प्रतिशत बीमारियों व दिक्कतों का पता लगा सकते हैं। विशेषज्ञ डाक्टरों की सहायता से गर्भ में ही कई प्रकार हार्ट डिजीज का इलाज भी किया जा सकता है। अगर इस पर ध्यान दिया जाए तो शिशुओं में में हार्ट डिजीज में कमी लाई जा सकती है। उन्होंने कहा कि डीटीआई जैसी तकनीक से मस्तिष्क के विकास और बीमारियों का पता लगाया जा सकता है।
ऐसे में शिशुओं में सेरेब्रालपाल्सी, पेरिवेंट्रिकुलर ल्यूकोमलेसिया (पीवीएल) और ल्यूकोडिस्ट्रॉफीज का जल्द इलाज किया जा सकता है। डॉ. सौरभ कुमार ने कहा कि गर्भ में भ्रूण असमानताओं के इलाज में रेडियोलॉजी संबंधी जांचों की उपयोगिता बढ़ती जा रही है। डॉ. आशु सेठ भल्ला और डॉ. नीरज जैन ने अपने अनुभव और बाल चिकित्सा कार्डियोपल्मोनरी रोगों में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की।