लखनऊ। कोरोना महामारी के कारण मरीजों के आने-जानेपर लगाए गए प्रतिबंधों के मद्देनजर किडनी के मरीजों के लिए लाइफस्टाइल में बदलाव करने वाले इलाज पर विचार करना और उसे विकल्प के रूप में अपनाना बहुत जरूरी हो गया है। इसमे होम बेस्ड डायलिसिस या पेरिटोनियल डायलिसिस (पीडी) के रूप में इसका उदाहरण दिया जा सकता है। कोरोना के दौरान रिमोट पेशेंट मैनेजमेंट (आरपीएम) ने पीडी के मरीजों को बेहतरीन थेरेपी है। एक अध्ययन के अनुसार भारत में किडनी के 0.2 मिलियन मरीज ऐसे हैं, जिन्हें हर साल कुल 34 मिलियन डायलिसस सेशन की जरूरत पड़ती है।
संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रो नारायण प्रसाद का कहना है कि डिजिटाइजेशन की उन्नत तकनीक के साथ रिमोट पेशेंट मॉनिटरिंग सिस्टम और टेलीमेडिसिन भारत में स्वास्थ्य रक्षा के भविष्य का रोडमैप तैयार कर रही है। कोरोना के चलते अस्पताल और डायलिसिस सेंटर में बार बार जाने से सीकेडी के मरीजों का कोरोना वायरस की चपेट में आने का खतरा बढ़ता जा रहा है। होम बेस्ड पेरिटोनियल डायलिसिस काफी सुरक्षित इलाज है, जिसमें मरीजों को क्वॉलिटी डायलिसिस घर में ही करने की इजाजत मिलती है। इसके साथ ही वह काफी नजदीकी से अपने डॉक्टर से जुडे रहते है। इससे संक्रमण में कमी आना सुनिश्चित होता है।
ऑटोमेटेड पेरिटोनियल डायलिसिस (एपीडी) करा रहे मरीजों की बीमारी में सुधार करने की क्षमता है। इसके लिए उन्हें कोविड-19 के संक्रमण को देखते हुए खुद को खतरे में डालने की जरूरत नहीं होगी। आरपीएम में इस्तेमाल की जा रही तकनीक विश्वसनीय है। इस तकनीक का उपयोग आरपीएम में किया जाता है और यह भरोसेमंद है तथा दूर से ही डॉक्टरों एवं मरीजों को आपस में जोड़कर एक बड़ा बदलाव ला सकती है। दरअसल आईटी से लैस पेशेंट मॉनिटरिंग सिस्टम या रिमोट पेशेंट मैनेजमेंट सिस्टम (आरपीएम) की तैनाती के बाद अब पीडी को डॉक्टरों और मरीजों की मदद के लिए पहले से ज्यादा अपनाया जाने लगा है। इससे न सिर्फ बीमारी को प्रभावी ढंग से मैनेज करने में मदद मिलती है, बल्कि इससे मरीज की जिंदगी की गुणवत्ता में सुधार आता है।