लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा चिकित्सा विश्वविद्यालय के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के विशेषज्ञ डाक्टरों ने थ्रेसर मशीन की चपेट में आयी किशोरी के कटे कान को जटिल सर्जरी करके दोबारा बना दिया। विशेषज्ञों ने हाथ की त्वचा की मदद से नया कान का फ्रे मवर्क बना कर तैयार किया। स्किन ग्राफिंग के साथ ही फ्री लैमिनेटेड फ्री फ्लैप तकनीक से कान का उसी स्थान पर प्रत्यारोपण कर दिया। किशोरी की इस जटिल सर्जरी के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष से मदद मिल गयी, जिसके बाद विशेषज्ञों ने किशोरी के नया कान प्रत्यारोपित कर दिया। विशेषज्ञों के अनुसार केजीएमयू में पहली बार कान का प्रत्यारोपण किया गया है।
विभाग के डा. बृजेश मिश्रा ने बताया कि वर्ष 2018 में मशीन की चपेट में आने से 13 वर्षीय किशोरी के बाल व कान उखड़ गया था। डाक्टर ने माइक्रो सर्जरी कर बालिका का कान तो जोड़ दिया था, मगर सात दिनों बाद संक्रमण के कारण कान को हटाना पड़ा था। दो वर्षो में काफी आर्थिक व शारीरिक दिक्कत झेलने के बाद किशोरी मरीज परिजनों के साथ दोबारा चिविवि आयी, तो प्लास्टिक सर्जरी विभाग में डाक्टरों ने पसलियों के माध्यम से हाथ में कान को विकसित किया। इसके बाद कान को उसकी सही जहग पर रि-इम्प्लांट किया।
गोण्डा निवासी बालिका अगस्त 2018 में थ्रेसर मशीन की चपेट में आ गयी थी। उसके बाल मशीन में फंसे और देखते ही देखते बाल व दांया कान उखडक़र जमीन पर गिर गया। परिजन उसी हालत में बालिका को लेकर केजीएमयू आए थे। डाक्टरों ने सर्जरी कर कान को उसकी जगह पर स्थापित कर दिया, लेकिन संक्रमण हो गया। सर एवं कान के हिस्से को स्किन ग्राफ्टिंग से भर कर ढक दिया गया। परिजन लगातार सर्जरी के लिए केजीएमयू आते रहे मगर महंगी सर्जरी होने से विशेषज्ञ भी पेशोपश में थे।
परिजनों ने सर्जरी के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष से मदद की अपील की। वहां से आर्थिक मदद स्वीकृत होने में समय लगा, जिसके बाद डाक्टरों ने सर्जरी प्लान किया। प्लास्टिक सर्जन डॉ. बृजेश मिश्रा ने बताया कि आमतौर पर कान बनाने के लिए जिन मांसपेशियों की जरूरत होती है, वह उसी स्थान पर दोबारा नहीं बन सकती है। इसी कारण दोबारा कान बनाना बहुत ही जटिल काम था। इसके लिए एक विशेष तकनीक से सर्जरी प्लान की गयी। डाक्टरों ने फ्री लैमिनेटेड फ्री फ्लैप सर्जरी का सहारा लिया। किशोरी के हाथ की कलाई पर कान का फ्रेम वर्क बनाकर हाथ की ही ऊपरी त्वचा व नीचे वाली त्वचा के बीच में प्रत्यारोपित कर दिया। छह माह बाद हाथ से कान हटाकर चेहरे पर लगा दिया गया। नवंबर अंत में बच्ची के कान को इंप्लांट किया गया। केजीएमयू में पहली बार हाथ पर कान बनाकर इंप्लांट किया गया। सर्जरी टीम में डॉ. बृजेश मिश्रा के साथ डॉ. केरल, डॉ. सुरेंद्र, डॉ. हर्षवर्धन, डॉ. शिल्पी व डॉक्टर सोनिया शामिल रही। डॉ. मिश्रा का कहना है कि सर्जरी में मुख्यमंत्री राहत कोष से मिली धनराशि की वजह से इस जटिल सर्जरी में काफी मदद मिली है।