टीबी-मुक्त भारत के लिए ज़रूरी है लेटेंट टीबी पर अंकुश लगाना

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हर नया टीबी रोगी, पूर्व में लेटेंट टीबी से संक्रमित हुआ होता है। और हर नया लेटेंट टीबी से संक्रमित रोगी इस बात की पुष्टि करता है कि संक्रमण नियंत्रण निष्फल था जिसके कारणवश एक टीबी रोगी से टीबी बैक्टीरिया एक असंक्रमित व्यक्ति तक फैला।

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लेटेंट टीबी, यानि कि, व्यक्ति में टीबी बैकटीरिया तो है पर रोग नहीं उत्पन्न कर रहा है। इन लेटेंट टीबी से संक्रमित लोगों में से कुछ को टीबी रोग होने का ख़तरा रहता है। जिन लोगों को लेटेंट टीबी के साथ-साथ एचआईवी, मधुमेह, तम्बाकू धूम्रपान का नशा, या अन्य ख़तरा बढ़ाने वाले कारण भी होते हैं, उन लोगों में लेटेंट टीबी के टीबी रोग में परिवर्तित होने का ख़तरा बढ़ जाता है।

दुनिया की एक-चौथाई आबादी को लेटेंट टीबी है। पिछले 60 साल से अधिक समय से लेटेंट टीबी के सफ़ल उपचार हमें ज्ञात है पर यह सभी संक्रमित लोगों को मुहैया नहीं करवाया गया है।

यह कथन अनेक बार दोहराया जाता रहा है कि टीबी से बचाव मुमकिन है और टीबी की पक्की जाँच और पक्का इलाज भी नि:शुल्क उपलब्ध है। पर यह वैज्ञानिक सत्य वास्तविकता से बहुत परे है क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम वैश्विक टीबी रिपोर्ट के अनुसार एक साल में 1 करोड़ से अधिक नए लोग टीबी रोग से संक्रमित हुए और 16 लाख से अधिक लोग टीबी से मृत हुए (इन 16 लाख मृत्यु में से 3 लाख मृत्यु एचआईवी पोज़िटिव लोगों की थी)।

ज़ाहिर बात है कि वैज्ञानिक तौर पर यह जानते हुए भी कि टीबी संक्रमण कैसे रोकें, हम महामारी को फैलने से नहीं रोक पा रहे हैं। यह जानते हुए भी कि टीबी की पक्की जाँच और पक्का इलाज कैसे हो, 16 लाख लोग एक साल में टीबी से कैसे मृत हो गए? जब 193 देश, सतत विकास लक्ष्य को पारित कर, 2030 तक टीबी उन्मूलन का वादा कर चुके हैं, यह अत्यंत चिंताजनक है कि एक साल में 1 करोड़ से अधिक लोग नए टीबी रोगी बने और 16 लाख लोग टीबी से मृत हुए।

आशा परिवार की स्वास्थ्य कार्यकर्ता और सीएनएस की निदेशिका शोभा शुक्ला ने कहा कि “यदि टीबी उन्मूलन का सपना साकार करना है तो संक्रमण नियंत्रण सशक्त करके यह पक्का करना होगा कि टीबी रोगी से संक्रमण किसी को न फैले (नया लेटेंट टीबी दर शून्य हो), हर लेटेंट टीबी से संक्रमित व्यक्ति को प्रभावकारी इलाज मिले, हर टीबी रोगी तक पक्की जाँच, पक्का इलाज पहुँचे और हर रोगी को यथासंभव सहायता मिले जिससे कि वह इलाज सफलतापूर्वक पूरा कर सके।”

स्टॉप टीबी पार्टनरशिप के सह-निदेशक डॉ सुवानंद साहू ने बताया कि 2018 की संयुक्त राष्ट्र महासभा में टीबी पर संयुक्त राष्ट्र का एक विशेष सत्र आयोजित हुआ था जिसमें सरकारों ने राजनीतिक घोषणापत्र पारित किया। इस घोषणापत्र में सरकारों ने वादा किया है कि 2022 तक 3 करोड़ लोगों को, टीबी रोग से बचाव के लिए दवाएँ मुहैया करवायी जाएँगी (यानि कि 3 करोड़ लोगों को लेटेंट टीबी के इलाज के लिए दवा मिलेगी जिससे कि रोग होने का ख़तरा न रहे)।

मेक्सिको में आयोजित 10वें अंतरराष्ट्रीय एचआईवी विज्ञान अधिवेशन के तहत, टीबी एचआईवी वैश्विक बैठक सम्पन्न हुई जिसका केंद्रीय विषय रहा: लेटेंट टीबी। इस बैठक के सैकड़ों प्रतिभागियों ने ‘कॉल टू एक्शन’ (करवायी हेतु आह्वान) जारी किया। इस करवायी हेतु आह्वान का मुख्य मक़सद है कि 2022 तक सरकारें 60 लाख एचआईवी के साथ जीवित लोगों को लेटेंट टीबी का इलाज मुहैया करवाएँ।

दुनिया की सरकारें पिछले साल आयोजित संयुक्त राष्ट्र महासभा में टीबी पर विशेष सत्र में यह वादा कर चुकी हैं कि 3 करोड़ लोगों को 2022 तक लेटेंट टीबी का इलाज मिलेगा। इन 3 करोड़ लोगों में 60 लाख एचआईवी के साथ जीवित लोग हैं, 40 लाख बच्चे हैं और 2 करोड़ टीबी रोगी के निकटतम लोग हैं जो उसके संपर्क में रहे हैं।

एचआईवी के साथ जीवित लोग आज सामान्य जीवनयापन कर सकते हैं यदि उन्हें एंटीरेट्रोवाइरल दवा मिले एवं उनका वाइरल लोड नगण्य रहे। एचआईवी कार्यक्रमों की यह कामयाबी पलट रही है क्योंकि एचआईवी पोज़िटिव लोगों में टीबी सबसे बड़ा अवसरवादी संक्रमण है और मृत्यु का कारण भी! जब टीबी से बचाव मुमकिन है और पक्की जाँच और पक्का इलाज भी नि:शुल्क उपलब्ध है तो फिर कैसे 3 लाख एचआईवी पोज़िटिव लोग टीबी के कारण एक साल में मृत हुए?

स्टॉप टीबी पार्टनरशिप के डॉ सुवानंद साहू ने कहा कि एचआईवी के साथ जीवित लोग, एड्स कार्यक्रम के स्वास्थ्य केंद्र पर एंटीरेट्रोवायरल दवा लेने नियमित आते हैं इसीलिए यह अधिक कारगर रहेगा यदि इन्हीं केन्द्रों से उन्हें टीबी से बचने की (लेटेन्ट टीबी के इलाज के लिए) समोचित दवा भी मिले.

बॉबी रमाकांत – सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)
(बॉबी रमाकांत, विश्व स्वास्थ्य संगठन महानिदेशक द्वारा पुरुस्कृत सीएनएस और आशा परिवार से जुड़े हैं. ट्विटर @bobbyramakant)

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