विश्व में चौथे नंबर पर है केजीएमयू का दंत संकाय

0
2038

कभी दस छात्रों के साथ शुरू होने वाले केजीएमयू के दंत संकाय की गिनती आज विश्व में चौथे पायदान पर की जाती है। यह देश का पहला ऐसा शिक्षण संस्थान है जो ओरल कैंसर पर भी काम करता है, साथ ही यहां लगभग सभी विषयों में पोस्ट ग्रेजुऐशन करवाया जाता है। इस साल यहां ओरल पैथोलॉजी में पीजी कोर्स भी शुरू हो जाएगा। सोने के दांत की सीधे फिलिंग भी पूरे देश में सिर्फ यहीं होती है। बात इतनी भर नहीं है। यहां तमाम ऐसी मशीनें हैं जो देश के किसी भी अस्पताल में नहीं हैं।

Advertisement

केजीएमयू का दंत संकाय कई मामलों में दूसरे चिकित्सकीय संस्थानों से काफी बेहतर है। यहां पर गोल्ड फॉयल रेस्टोरेशन की सुविधा है। ऐसा कहा जाता है कि यह सुविधा देश के किसी अन्य चिकित्सकीय संस्थान में उपलब्ध नहीं है। इतना ही नहीं यहां पर प्रति वर्ष लगभग तीन हजार मरीजों का रूट केनाल ट्रीटमेंट किया जाता है, जो शायद ही किसी दूसरे संस्थानों में इतने व्यापक स्तर पर होता हो। दंत चिकित्सा विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने के बाद इसने तेजी से प्रगति की है। यहां तमाम ऐसी मशीनें लगाई गई हैं, जो देश में किसी अन्य अस्पताल में नहीं हैं। इसके साथ ही तमाम विभाग बनाए गए हैं, जहां विशेषज्ञ शिक्षक और चिकित्सक हैं।

प्रोस्थोडोंटिक्स विभाग में दुर्घटना में आंख, नाक और कान खोने वाले लोगों का सिलिकॉन की मदद से कृत्रिम अंग लगाए जाते हैं। विभाग को इस काम में महारत हासिल है और यह देश में अपनी तरह का अकेला विभाग है। इन अंगों की खासियत यह है कि यह बिल्कुल असली जैसे लगते हैं और दो साल तक चलते हैं। विभाग के डॉ. एसवी सिंह ने बताया कि प्रोस्थोडोंटिक्स विभाग में चेहरे से संबंधित विकार को भी दूर किया जाता है।

ओरल एंड मैक्सीलरी सर्जरी विभाग की डॉ.दिव्या महरोत्रा ने बताया ने बताया कि केजीएमयू के दंत विभाग में कई ऐसी नई मशीनें आने वाली हैं जो कि जबड़े की विकृति को दूर करने के ऑपरेशन को ज्यादा कारगर बनाती हैं। विभाग की डॉ. दिव्या महरोत्रा ने बताया कि इन तीन तरह की तकनीकों में प्लानिंग सॉफ्टवेयर, थ्रीडी प्रिन्टर, नेवीगेशन, आर्थोस्कोप और रोबोटिक सर्जरी शामिल हैं। इसकी शुरुआत साल भर में होने की उम्मीद है।

तकनीक का बेहतर इस्तेमाल है

  1. प्लानिंग सॉफ्टवेयर –

दंत संकाय मशीनों के साथ ही नई तकनीक का भी इस्तेमाल कर रहा है। खास तौर से रोगों के इलाज के लिए सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जा रहा है। प्लानिंग सॉफ्टवेयर ऐसा ही सॉफ्टवेयर है जो सर्जरी से पहले ही सर्जरी की पूरी प्रक्रिया और सर्जरी के बाद मरीज की क्या स्थिति होगी, इसे देखा और समझा जा सकता है। इस तकनीक का उपयोग एसथेनिक सर्जरी में किया जाता है, जिसमें निचले और ऊपरी जबड़े की विकृति को ठीक किया जाता है। इसके अलावा यहां नाक की सर्जरी भी की जाती है। इसमें जबड़े को किस स्थिति में लाना है और किस तरह एडजेस्ट करना है सभी चीजें इस सॉफ्टवेयर में देखी जा सकती हैं। इस तकनीक के उपयोग से ऑपरेशन की सफलता 5० फीसदी तक बढ़ जाती है।

2. थ्री डी प्रिंटर

पहले विभाग में टूडी यानी दो कोणीय प्रिंटर थे लेकिन अब थ्रीडी प्रिंटर मंगवाने का प्रस्ताव भेज गया है। इस थ्रीडी प्रिंटर की सहायता से सीटी स्कै न की इमेज को थ्रीडी की जा सकती है। जबड़े के अन्दर जो भी प्लेट्स डालनी हैं इस इमेज की सहायता से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

3. नेवीगेशन मशीन

नेवीगेशन मशीन की सहायता से सबसे ज्यादा फायदा ट्रॉमेटिक मरीजों को होगा। मुंह पर चोट लगने से आंखों के आस पास की हड्डियों के फ्रेक्चर में कारगर है। इसमें हड्डियां ऊंची-नीची हो जाती हैं, इस तरह की सर्जरी में यह तकनीक ज्यादा कारगर है। नेवीगशन में प्रोग्राम सॉफ्टवेयर की सीडी डालकर पूरा ऑपरेशन केवल एक डॉक्टर के निर्देश में किया जाना संभव हो सकेगा। आर्थोस्कोप की सहायता से ज्वांइट को देखने में सहायता मिलती है। यह उपकरण भारत में कहीं नहीं है। इस उपकरण को जबड़े के ज्वांइट में डालकर अंदर की हड्डी देखी जा सकती है। इस मशीन की सहायता से डॉयग्नोसिस में ही नहीं बल्कि इलाज में भी सहायता मिलती है। इस उपकरण की सहायता से बॉयोप्सी, फाइब्रस बैंड आदि की भी जांच की जा सकती है। यह उपकरण एंडोस्कोप से काफी पतला केवल दो मिमी का होता है।

शुरू होगी रोबोटिक सर्जरी

केजीएमयू के दंत संकाय में बहुत जल्द बारीक से बारीक सर्जरी पूरी महारत से की जा सकेगी। इसके लिए रोबोट की मदद ली जाएगी। डॉ. दिव्या ने बताया कि रोबोटिक सर्जरी के लिए तैयारियां की जा रही हैं। इस तकनीक के आने से डेंटल चिकित्सा में क्रांतिकारी परिवर्तन आ जाएगा।

सिर्फ यहीं होता है मुंह के कैंसर का इलाज

ओरल एंड मैक्सीलरी सर्जरी के डॉ. यूएस पॉल ने बताया कि पूरे देश में केजीएमयू को छोड़कर और कहीं भी ओरल कैंसर का इलाज नहीं किया जा रहा है। ओरल कैंसर के इलाज के लिए कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी और लेजर थेरेपी के अलावा सर्जरी भी की जाती है। इसके अलावा जबान में कैंसर होने पर सीने की मांसपेशी से जबान बनाई जाती है। वहीं जबड़े की हड्डी और दांतों का इम्प्लांट आदि भी किया जाता है।
फोरेंसिंक ओडोंटोलॉजी नयी यूनिट है। इसकी शुरुआत पिछले साल ही दो सितम्बर को हुई थी। इस यूनिट को विभाग बनाने की कवायद हो रही है। यूनिट की डॉ. शालिनी गुप्ता ने बताया कि इस यूनिट का मुख्य उद्देश्य डेंटल प्रोफाइलिंग और डाटा बेस रिकार्ड रखना है। यह यूनिट पुलिस को अपराध विश्लेषण करने में भी मदद करती है। जब से यह यूनिट खुली है तब से अब तक यूनिट की मदद से दस से ज्यादा पुलिस केस सुलझाए जा चुके हैं।

डॉ. शालिनी ने बताया कि डेंटल प्रोफाइलिंग का मुख्य काम पुलिस केस और कारागार में मौजूद संदिग्ध अपराधियों के दांतों के डीएनए को सुरक्षित रखना है। इस तरह से रिकार्ड रखने से अपराधियों को पकड़ने में आसानी होती है। इसके साथ ही केजीएमयू के छात्रों के डेंटल प्रोफाइल और डीएनए बेस्ड रिकार्ड रखने का प्रस्ताव बनाया गया है। यूनिट में शवों के ब्लड सैंपल, दांत की डीएनए प्रोफाइलिंग की जाती है। डॉ.शालिनी ने बताया कि इसके अलावा डीएनए प्रोफाइलिंग से आयु का पता भी लगाया जा सकता है। इसमें व्यक्ति के बालिग और नाबालिग होने का पता भी लगाया जा सकता है। डॉ.शालिनी गुप्ता को फोरेंसिक ओडेंटोलॉजी क लिए आईएएफओ-2०14 अवार्ड मिल चुका है। साथ ही उन्हें छठी इनटरनेशनल क्रांफ्रेंस ऑन लीगल मेडिसिन एवं मेडिकल नेग्लिगेंस लिजीटेशन इन मेडिकल प्रैक्टिस और छठी इंटरनेशनल कांफ्रेंस आन करेंट ट्रेंड इन फोरेंसिक साइंस फोरेंसिक मेडिसिन एंड टोक्सीकोलॉजी में फेलोशिप अवार्ड दिया जाना है।

 

Previous articleजमाने के साथ बदला लखनऊ के युवाओं का फैशन
Next articleयूनानी में आठवीं शताब्दी में होने लगी थी सर्जरी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here