अगर आप बचपन में मोटे हैं, तो हो सकता है कि यह मोटापा आपको बड़े होने के बाद भी रहे और इससे कई तरह के डिस्ऑर्डर होने की संभावना भी बढ़ जाती है। इसके अलावा, कॉरनरी हार्ट डिजीज, सेरिब्रोवैस्कुलर डिजीज और टाइप 2 डायबिटीज के होने का खतरा भी बढ़ जाता है। इसके अलावा, ऑस्टियोपोरोसिस भी हो सकता है।
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इन बातों का रखें ध्यान –
- बच्चे को मां का दूध कम से कम सालभर पिलाएं। इससे वह कई सारी परेशानियों से बच सकता है।
- यदि जन्म के साल भर के भीतर ही बच्चे का वजन तेजी से बढ़ता दिखे तो तुरंत डॉक्टर को बताएं।
- यदि डॉक्टर बच्चे की जांच के बाद उसे किसी प्रकार की दवाई और खास डाइट के बारे में कहें तो उसे बिल्कुल फॉलो करें।
- बेबी फैट मानकर बच्चे के वजन को नजरअंदाज न करें।
- जन्म के कुछ ही समय बाद से बच्चे के वजन और लम्बाई को नियमित रूप से चेक करवाते रहें।
- बच्चे को खेलकूद और दौड़भाग वाली गतिविधियों में व्यस्त रखें और बहुत ज्यादा घी, बटर, क्रीम, तेल वाली चीजें या जंकफूड खाने को न दें।
- जूस की जगह पूरा साबुत फल बच्चे को खिलाएं।
- दाल-रोटी-सब्जी-चावल वाली डाइट साल भर के बाद से ही रूटीन का हिस्सा बनाएं। यदि वजन की वजह से बच्चे को शरीर पर सूजन जैसा, दर्द, रैशेज या पीलापन नजर आए तो सतर्क हो जाएं और तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।
- तीन साल की उम्र के बाद बच्चे के स्कूल में भी उसके एक्टिव रहने पर नजर रखें। यदि बच्चा घर में ज्यादा समय टीवी या कंप्यूटर के सामने बैठा रहता है तो यह खतरनाक हो सकता है। इस पर नजर रखें और इसके लिए घंटे निश्चित कर दें।
- यदि आपके परिवार में मोटापे की हिस्ट्री है तो गर्भावस्था के दौरान ही डॉक्टर से बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर भी सलाह लें। गर्भवस्था के दौरान अपने खान-पान पर भी नजर रखें। इसका असर भी बच्चे पर पड़ सकता है।