लखनऊ। आंख की बीमारी ग्लूकोमा के मरीज बढ़ रहे हैं। ग्लूकोमा की पहचान सही समय पर न होने से आंख की रोशनी भी जा सकती है। देश में 40 वर्ष से अधिक आयु का हर आठवां व्यक्ति ग्लूकोमा से पीड़ित है। हालांकि, इस पहचान मुश्किल से होती है, क्योंकि अधिकांश मामलों में ग्लूकोमा के लक्षण पता ही नहीं चलते हैं। ग्लूकोमा की जानकारी होते- होते बीमारी काफी बढ़ चुकी होती है। ग्लूकोमा से होने वाला अंधापन लाइलाज है।
यह जानकारी रविवार को विवेकानंद अस्पताल के नेत्र विभाग व ऑप्थाल्मिक सोसाइटी और यूपी स्टेट ऑप्थाल्मिक सोसाइटी के संयुक्त तत्वावधान में ग्लूकोमा विषय पर आयोजित कार्यशाला में कही गयीं। केजीएमयू नेत्र विभाग के डा. एसके भास्कर ने कहा कि ग्लूकोमा एक ऐसी स्थिति है जो आंख के ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुंचाती है और समय के साथ बद से बदतर हो जाती है। यह आँख के अंदर तंत्रिका पर दबाव को बढ़ाती है। ग्लूकोमा अनुवांशिक भी होती है जिससे बाद के जीवन मे दिखाई नहीं देता है।
दिल्ली की डा. देवेन तुली ने कहा कि उम्र बढ़ने के साथ ग्लूकोमा का खतरा अधिक हो जाता है। यदि आंख में चोट लगी है या परिवार में किसी को ग्लूकोमा है तो ग्लूकोमा होने की सम्भावनाएं और प्रबल हो जाती हैं। कार्यशाला में संस्थान के सचिव स्वामी मुक्तिनाथानंद, मध्यप्रदेश के उज्जैन के त्रिनित्रा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के डा. पराग शर्मा, डा. शालिनी मोहन ने भी विचार व्यक्त किये।