पीजीआई में हार्ट फेल्योर पर सेमिनार
दिल में कोई परेशानी न तो करें नजरंदाज
लखनऊ । हार्ट फेल का प्रमुख कारण कोरोनरी आर्टरी ब्लॉकेज (धमनियों में रुकावट आना) है। हार्ट फेल होने की वजह से हार्ट अटैक पड़ता है, जिससे हार्ट मसल्स का बड़ा हिस्सा हमेशा के लिए खराब हो जाता है। यह बात संजय गांधी पीजीआई में हार्ट फेल्योर पर आयोजित सेमिनार में पीजीआई के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सत्येंद्र तिवारी ने कही। इसके अलावा अन्य कार्डियक विशेषज्ञों ने हार्ट डिजीज के इलाज का अपडेट देने के साथ ही बच्चों में बढ़ रही कार्डियक डिजीज पर चर्चा की।
डा. तिवारी ने कहा कि फेफड़ों और अन्य अंगों को उनकी जरूरत के लिए दिल पर्याप्त मात्रा में खून नहीं पहुंच पाता है, क्योंकि हार्ट की मांसपेशियां डैमेज या कमजोर हो जाता है। दिल को जितना खून पंप करना चाहिए उतना नहीं कर पाता है।
उन्होंने कहा कि हाइपरटेंशन, कार्डियोमायोपैथी (हेरिडिटी, वायरल इंफेक्शन, अल्कोहल, कुछ दवाओं आदि के कारण हार्ट मसल्स की बीमारी) और एडवांस हार्ट वाल्व डिफेक्ट के कारण हार्ट फेल होता है। विभाग के प्रमुख प्रो. आदित्य कपूर, आयोजक सचिव प्रो. रूपाली खन्ना ने बताया कि मोटापा, डायबिटीज और उच्च रक्तचाप के कारण हार्ट फेल्योर की अधिक खतरा है। इस पर लगाम लगाने के लिए लाइफस्टाइल में बदलाव जरूरी है। निदेशक प्रो. आरके धीमन ने कहा कि नान कम्युनिकेबल डिजीज बढ़ रहा है। इससे किडनी, लिवर और हार्ट की बीमारी बढ़ रही है।
बच्चों में होगी रूमेटिक हार्ट डिजीज की स्क्रीनिंग
लखनऊ। कार्डियोलॉजी सोसाइटी ऑफ इंडिया के सचिव डा. देवव्रत ने बताया कि बच्चों में रूमेटिक हार्ट डिजीज का पता लगाने के लिए स्कूलों में स्क्रीनिंग कार्यक्रम शुरू किया जा रहा है। एक विशेष स्टेथोस्कोप तैयार किया गया, जो एप से लिंक है। इससे बीमारी का पता लगेगा। रूमेटिक हार्ट डिजीज के कारण वाल्व खराब हो जाते है। जिसके कारण हार्ट फेल्योर की आशंका रहती है। अध्यक्ष विजय बंग ने बताया कि जागरूकता के लिए सोसायटी वेबसाइट जारी करने जा रही है।
यह है हार्ट फेल्योर के लक्षण
सांस फूलना. शरीर में सूजन, पेट में भारीपन, भूख में कमी, सोने में परेशानी आदि। बीमारी के बढ़ने पर आराम करने के दौरान भी सांस की समस्या होती है।
आर्टीफीशियल इंटीलेंज बताएगा आने वाली है परेशानी
लखनऊ। प्रो. सुदीप कुमार ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से हार्ट फेल्योर के मरीजों में बताया जा सकता है कि कब परेशानी बढ़ने वाली है। भर्ती होने की स्थिति से पहले दवाओं में बदलाव कर भर्ती होने से बचाया जा सकता है। ईसीजी, ईको रिपोर्ट को साफ्टवेयर में फीड किया जाता है, जिसके आधार पर बीमारी की स्थिति के बारे में पता लगता है।