होली और स्वास्थ्य

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Photo Credit: TheHealthSite.com

होली रंगों का त्योहार है। मेल-जोल, खाना-पीना और मस्ती हुड़दंग पूरे माहौल को जीवन्त बना देते है। खुशगवार मौसम में एक दूसरे को रंगों में सराबोर करते लोग, गुझिया की मिठास से आपसी संबन्धों में एक नई निकटता और गर्मजोशी भर लेते हैं। लेकिन कई बार रंगों के खेल-खिलवाड़ और खान-पान के दौर सेहत को नुकसान पहुंचा जाते हैं। कुछ दशकों पहले तक होली के रंग पूरी तरह से प्राकृतिक होते थे। फूलों के रंगों से खेली जाने वाली होली त्वचा के लिये पूरी तरह से सुरक्षित होती थी। रासायनिक रंगों ने होली को स्वास्थ्य के परिप्रेक्ष्य में एक खतरनाक त्योहारों में तब्दील कर दिया है।

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अमूमन हर रासायनिक रंग में कोई न कोई घातक रसायन मिश्रित होता है जो आंखों, त्वचा, नाक और कई बार लिवर और गुर्दे तक को नुकसान पहुंचा सकता है। कुछेक रंगों में कैंसर कारक भी होते हैं। रासायनिक रंगों के कारण त्वचा पर जलन की समस्या पैदा हो सकती है और इस पर निशान पड़ सकते है। गुलाल और अबीर में मिला हुआ सीसा त्वचा में ददोरे, लालिमा और गंभीर खुजली पैदा कर सकता है। इसके अलावा त्वचा से या नाक या मुंह की म्यूकोजल सतह से शरीर के भीतर जाकर यह जहरीले तत्व शरीर को कई दूरगामी क्षति भी पहुंचा सकते हैं। इसी तरह यदि रंगों को देर तक साफ न किया जाए जो बाल बेहद सूखे हो जाते हैं और टूटने लगते हैं। ऐसा रंगों में मौजूद घातक रसायनों और बाहर मौजूद धूल के कारण होता है।

गीले रासायनिक रंगों में भी ग्रीन कॉपर सल्फेट, मरकरी सल्फेट, क्रोमियम जैसे अकार्बनिक धात्विक और बेन्जीन जैसे घातक एरोमैटिक कम्पाउन्ड होते हैं। जो त्वचा पर एलर्जी, डर्मेटाइटिस और खारिश पैदा कर सकते हैं। सिंथेटिक रंगों से त्वचा का बदरंग होना (डिस्कलरेशन), कॉन्टेक्ट डर्मिटाइटिस (त्वचा की एलर्जी), एब्रेशन (त्वचा का छिलजाना), इरिटेशन (त्वचा में य आंखों में जलन या असहज महसूस करना), इचिंग (खुजली होना), ड्राइनेस (त्वचा या नेत्रों में सूखापन महसूस होना) और फटी हुई त्वचा सरीखी समस्याएं पैदा हो जाती है।

जब आप रंग उतारने के लिए त्वचा को मलते हैं, तो बेन्जीन नामक रसायन त्वचा के ऊपरी भाग को नुकसान पहुंचाता है। ग्रीन रंग में कॉपर सल्फेट शामिल हो सकता है जिससे आंखों में एलर्जी की समस्या पैदा हो सकती है। पर्पल रंग में क्रोमियम आयोडाइड हो सकता है जिससे बा्रॅन्कियल अस्थमा और एलर्जी की समस्या पैदा हो सकती है। सिल्वर रंग में एल्यूमिनियम ब्रोमाइड शामिल होता है, जो त्वचा संबंधी रोग पैदा कर सकता है।

होली के मिलने-मिलाने के दौर में खान-पान की भी अति हो जाती है जिससे एसिडिटी, अपच, गैस्ट्राइटिस और उल्टी-दस्त जैसी दिक्कतें हो सकती है। ऐसे में खाते समय सेहत का ध्यान रखें। कोशिश करें कि हल्के और सुपाच्य खाने का सेवन करें। तैलीय, तीखी, गरीष्ठ और मसालेदार चीजों के सेवन से बचें। इस समय बाजार में मिलने वाली अधिकांश खाने पीने की चीजों में मिलावट की आशंका रहती है। इसलिये अच्छा हो कि खाने में घर में बनी चीजों को ही प्राथमिकता दें।

रंगों से सुरक्षा के तरीकेः

1. कुदरती रंगों का ही उपयोग करें।
2. होली खेलने से पहले अपने बालों में अच्छी तरह से तेल लगाएं।
3. शरीर को ठीक से ढक कर ही होली खेलें।
4. पूरे शरीर की त्वचा पर अच्छी क्वालिटी की क्रीम या तेल लगाएं।
5. त्वचा में कहीं जलन महसूस हो, तो रंग को तुरन्त धो डालें।
6. यदि त्वचा पर गंभीर लाली या सूजन हो, तो धूप में जाने से बचें और चिकित्सक की सलाह लें।
7. होली खेलने के बाद जल्द से जल्द त्वचा और बालों से सारा रंग धो डालना सबसे जरूरी होता है। त्वचा पर साबुन लगाकर उसे जोर से न मलें नहीं बल्कि प्राकृतिक उबटन और कच्चे दूध की सहायता से रंग को निकालने की कोशिश करें बाद में किसी अच्छे साबुन या शैम्पू से त्वचा और बालों को धुल सकते हैं।

डा0 सूर्य कान्त

विभागाध्यक्ष
रेस्पिरेटरी मेडिसिन
के0जी0एम0यू0 लखनऊ
अध्यक्ष, इंडियन मेडिकल
एसोसिएशन, लखनऊ

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