आईबीडी का इलाज समय पर हो तो बेहतर… डा.सुमित रुगंटा

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लखनऊ। सामान्य दवा लेने के बाद भी लगातार पेट में दर्द बना रहे आैर दस्त की परेशानी बनी रहने के साथ ही मल के साथ खून आ रहा हो। यही नहीं बुखार के साथ वजन घट रहा है, तो इन लक्षणों को नजरअंदाज न करे आैर गैस्ट्रोमेडिसिन विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। यह आंतों की जटिल बीमारी आईबीडी ( इंफ्रामेटरी बाउल डिजीज) हो सकती है। समय पर इलाज से यह ठीक हो सकती है, लेकिन देर से महंगा इलाज का बोझ उठाना पड़ सकता है। यह चेतावनी केजीएमयू गेस्ट्रोमेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुमित रूंगटा ने दी। वह शनिवार को पीजीआई गेस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग के डॉ. अभय वर्मा के साथ आईबीडी दिवस पर आयोजित जागरुकता कार्यक्रम में पत्रकार वार्ता को संबोधित कर रहे थे। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के शताब्दी-2 में विभाग के प्रेक्षागृह में डॉ. रूंगटा ने कहा कि आईबीडी दो प्रकार का होता है। इनमें अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोन्स रोग है। इन बीमारियों का कोई पुख्ता कारणों का पता नहीं चल पाया है। इसमें मरीज की आंतों में सूजन आ जाती है।

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उन्होंने बताया कि आमतौर पर अनियमित दिनचर्या व खान-पान में गड़बड़ी से बीमारी बढ़ रही है। शहरी लोगों में यह बीमारी अधिक देखने को मिलती है। यह भी देखा गया है कि महिला के मुकाबले आदमी इस बीमारी की चपेट में आसानी से आ जाते हैं। आंकड़ों के अनुसार देखा जाए तो एक लाख में 45 लोग बीमारी की चपेट में हैं। उन्होंने बताया कि लम्बे समय तक बिना डॉक्टर की सलाह के दर्द निवारक दवाओं का सेवन भी नहीं करना चाहिए। यह आंतों में घाव की संभावना को बढ़ाता है। उन्होंने बताया कि बीडी-सिगरेट पीने वालों को भी बीमारी आसानी से हो सकती है।
पीजीआई गेस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग के डॉ. अभय वर्मा ने बताया कि आंतों संबंधी बीमारी का कारण मैदा, फास्ट-फूड और कोल्ड ड्रिंक आदि होने की आशंका ज्यादा होती है।

इस बीमारी से बचने के लिए लोगों को मौसमी ताजे फलों का सेवन करना चाहिए। रेशेदार फल अधिक फायदेमंद हैं। हरी सब्जियां को सेवन भी लाभकारी है। मिर्च-मसाला व तली-भुनी वस्तुओं के सेवन से बचें। डॉ. वर्मा ने बताया कि आईबीडी का शुरुआत में दवाओं और खान-पान में सुधार से बीमारी पर काबू पाया जा सकता है। बाद में बायोलॉजिकल दवाएं की की जरूरत पड़ती है। इसमें एक महीने में 20 से 25 हजार रुपये का खर्च आता है। करीब एक साल से ज्यादा यह दवाएं मरीज को देने की जरूरत पड़ती है। इन दवाओं से जब बीमारी काबू में नहीं आती है तब ऑपरेशन करना ही पड़ता है। आपरेशन में बीमारी प्रभावित आंत के हिस्से को अलग कर देते हैं।

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