आदान काल में मनुष्य का शरीर दुर्बल रहता है। दुर्बल शरीर में जठराग्नि दुर्बल होती है। वर्षा ऋतु में दूषित वात, पित्त, कफ के कारण जठराग्नि और भी क्षीण हो जाती है। वर्षाकाल में साधारण रूप से सभी नियमों का पालन करना चाहिए।
वर्जित आहार विहार :-
इस ऋतु में सत्तू का सेवन, दिन में सोना,ओस में घूमना फिरना, नदी नालों पोखरों तालाबों का जल सेवन
सेवनीय आहार विहार :-
वर्षा ऋतु में मधु का सेवन करना चाहिए। विशेष दिनों में अम्लरस तथा लवणरस वाले और चिकनाई युक्त भोजन करने चाहिए। भोजन में गेहूं, चावल अवश्य प्रयोग करने चाहिए। इनको संस्कारित मूंग के रस के साथ लेना चाहिए। मदिरा का शौक रखने वाले थोड़ी मात्रा में मदिरा का सेवन करना चाहिए एवं मधु मिलाकर जल का सेवन करें। वर्षा ऋतु में गर्म करके शीतल किया हुआ जल सेवन करना चाहिए। उबटन, स्नान तथा चंदन आदिगंध युक्त द्रव्यों का प्रयोग करें।
वर्षाकाल में निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है –
हर स्थान का पानी न पिएं। घर से पानी पीकर निकलें। यदि पिएं भी तो शुद्ध जल,क्योंकि वर्षाकाल में दूषित जल पीने से रोग हो जाते है। वर्षा ऋतु के प्रभाव से वात का प्रकोप रहता है। अतः वात कुपित करने वाला आहार विहार नहीं करना चाहिए। जहां तक संभव हो शाम का भोजन सूर्यास्त से पहले ही कर लें। सूर्य अस्त होने के बाद जठराग्नि मंद हो जाती है जिससे भोजन देर में पचता है। वर्षाकाल के आरंभ में गाय भैंस नई नई पैदा हुई घास खाती है। अतः श्रावण मास में दूध नहीं पीना चाहिए। अंतिम समय में पित्त कुपित लगता है। अतः इन दिनों मेंभाद्रपद मास में छाज नहीं पीनी चाहिए। वर्षाकाल में जीव जंतु और जहरीले कीड़े भूमि पर विचरते है।
अत: वात कुपित करें वाला आहार विहार नहीं करना चाहिए। जब आसमान में बादल छाए हो तब जुलाब न लें। देर रात को भोजन न करें और शाम को गरिष्ठ और देर से हजम होने वाला आहार ग्रहण न करें। यदि बारिश में भीग जाएं तो तुरंत गीले कपड़ें उतार दें और सूखे कपड़ें पहन ले। ज्यादा देर गीले बदन न रहे वर्षा ऋतु में नदी तालाब अज्ञात जलाशय और उफनती नदी में स्नान करना और ज्यादा देर तक तैरना उचित नहीं।
(सुमन पवार )