लखनऊ। गोमती नगर के डा. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के सर्जिकल आंकोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. विकास शर्मा की टीम ने स्तन कैसर पीडि़त का इलाज करने के साथ उसे नया स्तन बना दिया है। इसमें उसकी पेट की चर्बी व मांसपेशियों का प्रयोग किया गया है। यही नही इन डाक्टरों की टीम ने एक अन्य महिला की बच्चेदानी के पांच किलो के ट¬ूमर को निकाल दिया। डा. विकास ने यही नहीं दस वर्ष के बच्चे के कंधे की हड्डी काटकर शरीर से हटा दी। कंधे की हड्डी में बुरी तरह से कैंसर फैल गया था। यदि मरीज का 15 से 20 दिन में इलाज न होता तो उसकी जान जा सकती थी।
डॉ. विकास और डॉ. अखलाख ने संयुक्त रूप से पत्रकार वार्ता करते हुए बताया कि स्थानाीय महिला (45) जांच के लिए आयी। जांच में उसको स्तन कैंसर निकला, यह कैंसर कांख तक पहुंच गया था।
स्तन से फैलता हुआ कैंसर कांख के पास एक बड़ी गांठ के रूप में फैला हुआ था। डा. विकास ने बताया कि सर्जरी से कांख की इस बड़ी गांठ को करीब 24 टुकड़ों में निकाला गया। इसके बाद स्तन को हटाते हुए फिर अंदर से कांख की गांठ को तोड़कर निकाला। सर्जरी के दौरान महिला के पेट के आसपास की चर्बी आैर मंासपेशियो को निकाल लिया गया। इससे नया बायां स्तन बनाया दिया गया। ताकि महिला को कोई दिक्कत महसूस न हो। उनका कहना है कि संस्थान में ऐसा स्तन कैंसर का ऑपरेशन पहली बार हुआ है। अब उसकी दो सप्ताह बाद से कीमोथेरेपी शुरू होगी, जो कि कुछ समय ही चलायी जाएगी।
विशेषज्ञ डॉक्टरों की इसी टीम ने एक अन्य महिला विद्यावती (50) के ओवरी के करीब पांच किलोग्राम के ट¬ूमर को निकाल दिया गया। डॉ. विकास ने बताया कि इस मरीज को बाएं तरफ बच्चेदानी में ट¬ूमर था। इसको बिना तोड़े निकाल दिया गया । मरीज अब पूरी तरह से स्वस्थ है। डॉक्टरों ने महिला मरीज के पेट में तेज दर्द की समस्या दो माह पहले उठी थी। यह कई जगह दिखाने के बाद संस्थान पहुंची तो इसका पेट तेजी से फूल रहा था। भूख न लगने के साथ ही सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी थी। महिला चलने, उठने या कहीं भी आने-जाने में असहज थी। मल-मूत्र में दिक्कत थी। जांच में पता चला कि बाएं ओवरी की इस बड़ी गांठ (ट¬ूमर) ने बच्चेदानी को धकेलकर दाहिनी ओर कर दिया था, पेशाब की थैली और बड़ी आंत से गांठ चिपक गई थी। शुक्रवार को ऑपरेशन हुआ।
इसके अलावा डॉ. विकास शर्मा ने बताया कि पटना के दस वर्षीय साहिल को बाएं कंधे पर एक बड़ी गांठ थी। इस गांठ की वजह से कैंसर उसके कंधे पर बुरी तरह फैल रहा था। कैंसर की गांठ ने छाती की बड़ी नस क्लैविकल को दबा रखा था, जिससे खून का सरकुलेशन कम हो गया था। इस कैंसर को मलिंग्नेट पेरीफेरल नर्व या सॉफ्ट टिशू सारकोमा कहते हैं। साहिल को लगातार दर्द बढ़ रहा था, हाथ ऊपर नहीं उठ पा रहा था।
डॉ. विकास है कि साहिल का दो माह पहले बिहार के एक जिले में निजी अस्पताल के डॉक्टरों ने ऑपरेशन किया, लेकिन उन्होंने ऑपरेशन सही नहीं किया। अधूरा ऑपरेशन करने से कंधे पर तेजी से कैंसर और संक्रमण बढ़ रहा था। डॉ. विकास शर्मा ने बताया कि यह कैंसर एक लाख में एक मरीज को होता है। लोहिया संस्थान में मरीज की कंधे की हड्डी काटकर निकाल दी गई। मरीज गरीब था, पूरा इलाज 30 हजार रुपये के अंदर हो गया।
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