ग्लूकोज चढ़ाने या ब्लड सैंपल लेने के लिए नस तलाशने के लिए नहीं चुभोनी पड़ेगी निडिल
केजीएमयू के इमरजेंसी मेडिसिन विभाग में शुरु हो गया है प्रयोग
लखनऊ। अक्सर ब्लड सैम्पल लेने के लिए या फिर इमरजेंसी में आने वाले गंभीर मरीजों की नसों को खोजने के बार-बार निडिल चुभाने पड़ती है। ताकि सही नस मिल जाए, लेकिन ऐसा नहीं करना होगा। वेन विवर (विशेष प्रकार की टॉर्च) से नसों की पहचान किया जा सकेगा। इससे बिना परेशानी एक बार में ब्लड सैम्पल लेने व ग्लूकोज समेत दूसरी दवाओं को चढ़ाया जा सकेगा। यह जानकारी किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के इमरजेंसी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. हैदर अब्बास ने दी।
वह शुक्रवार को शताब्दी फ्रेज दो स्थित विभाग में पत्रकार वार्ता को संबोधित कर रहे थे। डॉ. हैदर अब्बास ने बताया कि वेन विवर (विशेष प्रकार की टॉर्च) का प्रयोग इमरजेंसी मेडिसिन विभाग में प्रयोग किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि वेन विवर (विशेष प्रकार की टॉर्च) का प्रयोग की जानकारी नैमीकान काफ्रेंस में दी जाएगी। इसके बाद उपकरण के संचालन के लिए डाक्टर्स व नर्सिंग स्टाफ व पैरामेडिकल को प्रशिक्षण दिया जाएगा। डा.अब्बास ने बताया कि जल्दी ही इस उपकरण का प्रयोग ट्रामा सेंटर व सभी विभागों में शुरू कर दिया जाएगा।
डॉ. हैदर अब्बास ने बताया कि स्ट्रोक समेत दूसरी गंभीर बीमारी में इमरजेंसी में लाए गए मरीज की हालत बेहद गंभीर होती है। मरीज की जिंदगी के लिए एक-एक मिनट महत्वपूर्ण होता है। मरीजों का ब्लड प्रेशर कम हो जाता है। कई बार तो मरीज शॉक में आ जाते हैं। इसके कारण वैस्कुलर सिस्टम प्रभावित होता है। ऐसे में नसें खोजना मुश्किल होता है। डॉक्टर-पैरामेडिकल स्टाफ ब्लड का सैंम्पल एकत्र करने व दवा चढ़ाने के लिए नसों को खोजते हैं।
इसके लिए बार-बार निडिल चुभोनी पड़ती है। ऐसे में टॉर्च की तरह खास उपकरण से नसों की तलाश आसानी से की जा सकती है। वेन विवर से निकलने वाली अल्ट्रावाइलेंट किरण नसों की सही स्थिति व स्थान बता देती है। इससे मरीज को ब्लड सैंपल देने में परेशानी नही होती है। यही नही ग्लूकोज या स्लाइन लगाने के लिए आसानी से वीगो लगा दिया जा सकेगा। उन्होंने बताया कि बच्चों की नस तलाश करने में निडिल लगानी पड़ती है। इससे बच्चे रोने लगते है आैर ब्लड सैंपल देने का विरोध करते है। वेन विवर उपकरण के प्रयोग से खास कर बच्चों ब्लड सैंपल देने में परेशानी नहीं होगी। यही बुजुर्गो को भी ब्लड सैंपल देने व ड्रिप लगाने के लिए वीगो लगाना आसान हो सकेगा। उन्होंने बताया कि बहुत से मरीजों की नस बहुत पतली होती है , जिसमें सही नस पहचाने पर निडिल चुभोनी ही पड़ती है। अब ऐसा नहीं होगा। इमरजेंसी मेडिसिन विभाग में यह उपकरण सफलता पूर्वक मरीजों में प्रयोग किया जा रहा है।
ट्रॉमा सेंटर के सीएमएस डॉ. प्रेमराज ने बताया कि स्ट्रोक के मरीजों की जिंदगी के लिए तीन से साढ़े चार घंटे अहम होते है। इस दौरान इलाज शुरू होने से मरीज की जान बचने की उम्मीद बढ़ जाती है। लेकिन अभी भी लोग स्ट्रोक हुआ है इसे शुरूआत में नहीं मानते हैं।