कोलकाता – भारत में अब भी पोषण का परिदृश्य दक्षिण एशिया के कई अन्य राष्ट्रों की तुलना में बेहतर नहीं है। हालांकि देश में कुपोषण के गंभीर रूपों में काफी कमी आई है। एक वरिष्ठ न्यूट्रिशन पैथॉलॉजिस्ट ने आज यह जानकारी दी। राष्ट्रीय पोषण संस्थान और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् के पूर्व निदेशक डॉ बी शशिकरण ने हैदराबाद से बताया कि भारत के कुछ हिस्सों को छोड़कर कुपोषण के गंभीर रूपों में काफी कमी आई है। उम्र के मुताबिक कद कम होना और वजन के मुताबिक कद कम होने की प्रवृत्ति में गिरावट आई है लेकिन स्थिति अब भी हमारे क्षेत्र के कई अन्य देशों से बेहतर नहीं है।
उन्होंने बताया कि विभिन्न पोषक तत्वों की कमी के गंभीर रूपों जैसे विटामिन ए की कमी, आयोडीन की कमी में काफी कमी हुई है। हालांकि आयरन की कमी और अब फोलिक एसिड, बी 12 और विटामिन डी कमी अब भी बनी हुई है। दक्षिण के कुछ राज्यों में जन्म के वक्त औसत से कम वजन होने में भी काफी गिरावट आई है जबकि उत्तर के राज्यों में यह अब भी ज्यादा है। यह बयान विश्व स्वास्थ्य संगठन की हाल में आई उस रिपोर्ट की पृष्ठभूमि में आया है जिसमें कहा गया है कि भारत में हर साल 25 लाख बच्चों की मौत कुपोषण की वजह से होती है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन में पांच साल के कम वजन वाले बच्चों की संख्या केवल सात प्रतिशत है जबकि भारत में 42.5 फीसदी है जो चिंतनीय है। डब्ल्यूएचओ ने यह भी कहा था कि कुपोषण में गिरावट की रफ्तार धीमी है। कुपोषण की दर में गिरावा का प्रतिशत एक साल में दो फीसदी से भी कम है।
कई राज्यों में कुपोषण अब भी एक मुद्दा है –
सेहत के लिए पोषण की महत्वता पर जागरूकता फैलाने के इरादे से देश हर साल की तरह इस वर्ष भी एक से सात सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मना रहा है। शशिकरण ने कहा कि पांच वर्ष तक की उम्र के बच्चों की मृत्यु दर पर आधारित राज्यों जैसे, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, बिहार और गुजरात में कुपोषण अब भी एक मुद्दा है।
15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण एनएफएचएस-4 पर ध्यान दिलाते हुए डॉ शशिकरण ने कहा कि यह संकेत देता है कि शैशव और शुरूआती बचपन में बहुत कम बच्चों की मौत हो रही है।
उन्होंने कहा, ” हम हमारे क्षेत्र में बांग्लादेश और ीलंका से बदतर है और पाकिस्तान और नेपाल से बेहतर हैं। अगर सांत्वना के तौर पर देखें तो।
उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और ओडिशा में आईएमआर 60 से ज्यादा है। पिछले साल की तुलना में जी हां हम अपेक्षाकृत बेहतर हैं लेकिन यह काफी अच्छा नहीं है।
(भाषा)