लखनऊ। एंटीबायोटिक दवाओं का बिना मानकों के उपयोग व डाक्टरों के निर्देश के बिना प्रयोग इस्तेमाल नहीं रोका गया, तो सर्वाधिक मौतें सेप्सिस के कारण भविष्य में होगी। वर्तमान में आंकड़ों को देखा जाए तो हार्ट अटैक व कैंसर के बाद सेप्सिस विश्व में तीसरी सर्वाधिक मौतों का कारण है। अगर अभी सावधान नहीं हुए तो आने वाले वक्त में सेप्सिस विश्व की नंबर वन मौत का कारण बन जाएगी। यह जानकारी वल्र्ड सेप्सिस डे की पूर्व संध्या पर रविवार को किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन के प्रमुख डा. वेद प्रकाश ने पत्रकार वार्ता में दी। पत्रकार वार्ता में प्रो. डा. बीएन प्रसाद तथा यूरोलोजी विभाग के प्रो. अपुल गोयल भी मौजूद थे।
डा. वेद ने कहा कि केजीएमयू से लेकर पीजीआइ व लोहिया संस्थान के अलावा निजी क्षेत्र के अस्पताल के आइसीयू में विभिन्न बीमारियों के मरीज भर्ती हैं, उनमें क्रिटकल होने का बड़ा कारण सेप्सिस है। उन्होंने बताया कि अगर देखा जाए तो आइसीयू में भर्ती मरीजों में 60 से 70 प्रतिशत मरीज सेप्सिस से पीड़ित हैं। इनमें सबसे ज्यादा 35 फीसद मरीज रेस्पिटरेट्री सेप्सिस (सांस रोग संबंधी संक्रमण) व 25 फीसद मरीज यूरोसेप्सिस(मूत्र संबंधी संक्रमण) से ग्रस्त हैं। बाकियों में अन्य तरह का संक्रमण है। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा कारण एंटीबायोटिक व पेन किलर निवारक दवाओं अनावश्यक प्रयोग व डाक्टरों एवं मरीजों का दवाओं के सेवन की सही जानकारी भी है। सेप्सिस नियंत्रण नहीं मिलने पर शरीर के अंग फेल होने लगते हैं। इससे मरीज की मौत हो जाती है।
डा. वेद के अनुसार जिन बीमारियों में कम डोज वाली एंटीबायोटिक व बिना एंटीबायोटिक के काम चल सकता है, वहां भी सही जानकारी के अभाव डाक्टर पहली ही बार में एंटीबायोटिक की हाई डोज दे रहे हैं। ऐसे में सेप्सिस रजिस्ट्रेंस होती जा रही है। डा. वेद ने कहा कि डाक्टर तीन या पांच दिन दवा लिखे तो मरीज एक दो दिन कम या उससे अधिक दिन तक बची हुई दवा खाने का प्रयास करता है। यह दोनों स्थिति घातक हो सकती है। अगर परामर्श से कम दिन दवा ली तो बचे हुए वायरस बैक्टीरिया बाद में शरीर में रजिस्ट्रेंस पावर विकसित कर लेते हैं। ऐसे में फिर कभी दिक्कत होने पर वह दवाएं काम नहीं करेंगी। इस दौरान प्रो. डा. बीएन प्रसाद ने कहा कि अस्पतालों में साफ-सफाई न होना व उपकरणों का संक्रमण भी सेप्सिस की बड़ी वजह है। वहीं यूरोलोजी विभाग के प्रो. अपुल गोयल ने कहा कि 25 प्रतिशत मरीज यूरोसेप्सिस(मूत्र संबंधी संक्रमण) से ग्रस्त हैं। इनमें महिलाओं में संक्रमण ज्यादा होता है, लेकिन पुरुषों में मूत्र संक्रमण कम होता है, लेकिन लापरवाही यह खतरनाक हो सकता है। उन्होंने कहा कि वृद्धावस्था, प्रतिरक्षादमन, शुगर, मोटापा, कैंसर व कीटनाशकों और रसायनों का अधिकाधिक प्रयोग भी सेप्सिस के खतरे को बढ़ा रहा है।