लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के कृत्रिम अंग एवं अवयव के द्र (लिम्ब सेंटर) में एक नयी तकनीक से बनाये गये उपकरण से टूटी हड्डियों पर प्लास्टर चढ़ाने की आश्वयकता बहुत ही कम होगी। नयी तकनीक ह्यूमरल फ्रेक्चर बेस मोड लो टम्प्रेचर थर्मोप्लास्टिक का निर्माण दस मिनट में करके मरीज को लगा दिया। इस मरीज के एक्सीडेंट में हाथ में कोहनी के ऊपर हड्डी टूट गयी थी। जिसे अन्य डाक्टरों ने सर्जरी करके ही जोड़ना बताया था। डा. जीके सिंह ने प्लास्टर से हड्डी को जोड़ दिया। आर्थोपैडिक विभाग के प्रमुख डा. जीके सिंह ने बताया कि श्वेता भटनागर (35) का 24 अक्टूबर को कार एक्सीडेंट में हाथ में चोट लगने कंधे के नीचे की हड्डी टूट गयी थी।
बरेली में हुए एक्सीडेंट के कारण स्थानीय डाक्टरों ने हड्डी को जोड़ने के लिए सर्जरी करने का परामर्श दिया था। इसके बाद श्वेता किसी के बताने से डा. जीके सिंह को हाथ दिखाने पहुंची । यहां पर डा. सिंह ने फौरी तौर पर प्लास्टर को बांध दिया। तीन हफ्ते बाद प्लास्टर खोलने पर हड्डी काफी हद तक जुड़ गयी थी, लेकिन कमजोर लग रही थी। इसके बाद उन्होंने एक नवीन तकनीक से उपकरण बनाने का निर्णय लिया। इसके लिए कृत्रिम अंग कार्यशाला के प्रबंधक अरविंद निगम, सीनियर प्रोस्थोडोटिस्ट शगुन के अलावा अंग निर्माण में मदद करने वाली इंडोलाइट के रीजनल मैनेजमेंट वीरेन्द्र प्रसाद के सहयोग से उपकरण बनाने का निर्णय लिया।
इस उपकरण का प्रयोग बहुत ही कम निजी अस्पतालों में प्रयोग किया जाता है। सरकारी स्तर पर अभी तक इस उपकरण का प्रयोग नहीं हुआ है। ह्यूमरल फ्रेक्चर बेस मोड लो टम्प्रेचर थर्मोप्लास्टिक उपकरण को बनाने के लिए सीधे तौर पर हाथ का नाप लेकर थर्मो प्लास्टिक को शगुन के सहयोग से सीधे मशीन में मोल्डिग कर दिया। इससे पहले नाम लेकर प्लास्टक की नाम के आधार पर बनाया जाता था। डा. सिंह ने दिशा निर्देशन में बने इस उपकरण को बनाने में मात्र दस मिनट लगे आैर लगभग पांच हजार का खर्च आया। जबकि बाजार में यह आर्डर देने पर काफी अधिक शुल्क पर बनता है।
अरविंद निगम ने बताया कि इस उपकरण के बन जाने पर कूल्हे की हड्डी,पैर की फिबुला आदि हड्डी पर प्लास्टर नहीं चढ़ाना होगा। सीधे इस उपकरण को लगाने पर हड्डी पर प्लास्टर नहीं लगाना होगा। उन्होंने बताया कि भविष्य में स्पाइन को सीधा करन में भी इसका प्रयोग किया जाएगा।