विश्व में जन्मजात शारीरिक और मानसिक विकृतियों वाले बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इसकी जड़ में जाने पर पता लगता है कि अधिकाॅंश देशों में इस प्रकार की सामाजिक और धार्मिक मान्यताएं बनी हुई हैं जिनमें विवाह संबंध पति और पत्नी के सीधे रक्तसंबंधियों में ही किए जाने की परम्पराओं का पालन किया जाता है। जीवविज्ञानी यह स्पष्ट करते हैं कि समान रक्त संबंधियों में मस्तिष्क विकार, अनुवाॅंशिक असामान्यताएं, कैंसर जैसी बीमारियाॅं और अन्य गंभीर मानसिक विकृतियों का जन्म होता है। आज के भौतिकवादी समाज में युगलों को केवल आसक्ति के मोहजाल में फॅसकर वैवाहिक बंधन में बंधते हुए देखा जाता है जो इन ‘संकीर्ण जीन पूल्स’ के दुष्परिणामों से अनजान रहकर बाद में आजीवन कष्ट भोगते देखे गए हैं क्योंकि उनकी संतान असाध्य रोगों से जूझते हुए मरणासन्न ही बनी रहती है।
इसलिए जहाॅं तक संभव हो भावी पतियों और पत्नियों को अपनी आनुवाॅंशिक पृष्ठभूमि का परीक्षण और यौन जनित रोगों, ‘‘एच आई वी और एड्स’’ आदि की जानकारी जुटा कर ही संबंध बनाना चाहिए। इस प्रकार की सावधानियाॅं रखने पर ही मजबूत, स्वस्थ, जीवन्त और बुद्धिमान संतान को संसार में लाया जा सकता है। यह तभी हो सकता है जब विवाह विविध आनुवाॅंशिक ‘मेकअप’ बनाने को ध्यान में रखकर किया जाय। भारत की हजारों वर्ष पुरानी संस्कृति में इस बात का ध्यान रखा गया है और, हमारे पूर्वजों ने ‘समगोत्रीय विवाह’ को प्रारंभ से ही वर्जित बताया है। ज्योतिष में भी गुण मिलान करते समय ‘‘नाड़ी’’ दोष होने पर विवाह को श्रेष्ठ नहीं माना जाता। नाड़ी को ‘ब्लड ग्रुप और जीन्स’ से संबंधित माना जाता है। इस व्यवस्था के पीछे मनीषियों का यही विचार था कि हमारी भावी सन्तान गतिशील,स्वस्थ, प्रबल और उन्नत मस्तिष्क की हो।
वे देश, जहाॅं केवल समगोत्रीय विवाहों की ही परम्परा है और इसे ही सर्वोत्तम मानकर धार्मिक आधार दिया गया है उन देशों के नागरिकों में मस्तिष्क विकार, अनुवाॅंशिक असामान्यताएं, कैंसर जैसी बीमारियाॅं और अन्य गंभीर मानसिक विकृतियों का होना आम बात है। ‘विकीपीडिया ’ के अनुसार संसार में अन्य देशों की तुलना में, ‘अरब देशों ’ में सबसे अधिक आनुवाॅंशिक विकृतियाॅं पाई जाती हैं। सऊदी अरब सहित मध्य पूर्व के अनेक देशों में 70 प्रतिशत से भी अधिक समगोत्रीय विवाह होते हैं। इराक में 33 प्रतिशत और अफगानिस्तान में 30 से 40 प्रतिशत तक इस प्रकार के विवाह होते हैं। इन स्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए दुबई के एक अनुसंधान केन्द्र ‘ अरब जैनोमिक स्टडीज’ ने अपने शोध परिणामों के आधार पर इन देशों को सचेत करने का कार्य प्रारम्भ कर दिया है, इसे भावी पीढ़ियों के लिए हितकारक ही माना जाना चाहिए।
– अरविन्द कुमार निगम कार्यशाला प्रबन्धक एवं प्रभारी ओर्थोटिक एवं प्रोस्थेटीक डी पी एम आर के जी एम यू लखनऊ।
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