जरुरी नहीं धूम्रपान करने वाले को लंग कैंसर

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लखनऊ। हर साल फेफड़े के कैंसर के 67,000 नए मामले सामने आते हैं। काफी लंबे समय तक ऐसा माना जाता रहा था कि फेफड़ों का कैंसर सिर्फ धूम्रपान करने वाले पुरुषों को ही होता है, लेकिन अब नए अध्ययनों से ऐसे संकेत भी मिले हैं कि धूम्रपान नहीं करने वाले भी लंग कैंसर के मरीज़ बन सकते हैं। लंग कैंसर युवाओं, धूम्रपान नहीं करने वालों और महिलाओं में ज्यादा आम हैं। यह जानकारी डा. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के कैंसर रोग विशेषज्ञ डा. गौरव गुप्ता ने दी।

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उन्होंने बताया कि एक खास तरह का लंग कैंसर जिसे नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर (एनएससीएलसी) कहा जाता है, सभी तरह के लंग कैंसर के मामलों में 85 प्रतिशत पाया जाता है। ऐसे अधिकांश मामले देरी से पकड़ में आते हैं, जबकि इनका कोई इलाज मुमकिन नहीं होता। क्योंकि शुरूआत में कोई लक्षण दिखायी नहीं देते या दिखते भी हैं तो उन्हें दूसरे संक्रमण समझा जाता है। यही वजह है कि ऐसे में इलाज करना काफी चुनौतीपूर्ण बन जाता है। वर्ष 2003 तक, एडवांस एनएससीएलसी से पीड़ित मरीज़ों के उपचार के लिए एकमात्र उपलब्ध विकल्प कीमोथेरेपी ही था और इससे मरीज़ का जीवन 8 से 10 महीने तक बचाया जा सकता था, लेकिन हाल में इस क्षेत्र में हुई प्रगति ने एक और विकल्प उपलब्ध कराया है, यह है – टारगेटेड थेरेपी, जो मरीज़ों को कीमोथेरेपी की कमियों से उबारकर उनके जीवन में लगभग 45 महीने और जोड़ सकता है।

उन्होंने कहा, फेफड़ों के कैंसर के इलाज में समय के साथ काफी बदलाव आए हैं। एक समय था जब रेडिएषन और कीमोथेरेपी ही उपचार विकल्प हुआ करते थे। लेकिन आज टारगेटेड थेरेपी मरीज़ों के मामले में बेहतर परिणाम लेकर आ रही है।डॉक्टर लंग कैंसर से प्रभावित मरीज़ों के बचने की संभावनाओं में सुधार लाने के लिए टारगेटेड थेरेपी का इस्तेमाल कर रहे हैं। इलाज के कई विकल्प उपलब्ध हैं, इसलिए ट्यूमर के प्रकार के आधार पर सही प्रकार की दवा का चुनाव करना महत्वपूर्ण है। डायग्नॉस्टिक टेस्ट के जरिए इस म्युटेशन की पहचान करने के बाद, टारगेटेड थेरेपी की मदद से ट्यूमर्स को संकुचित किया जा सकता है। इसी प्रकार के परिणाम उन मरीज़ों के मामलों में भी देखे गए हैं जिनकी जींस में म्युटेशन पाए गए हैं।

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