लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के बाल शल्य विभाग के डाक्टरों ने बेहद जटिल सर्जरी करके शिशु के खाने की थैली को काट कर आहार नली बनाया है। शिशु के जन्म से ही आहार नली विकसित नहीं थी। शिशु को दूध पिलाने पर फेफड़ो में जा रहा था और इस कारण उसे खांसी आ जाती थी। डाक्टरों ने मामले की गंभीरता को देखते हुए केजीएमयू के बाल शल्य विभाग में रिफर किया गया। यहां बाल शल्य विशेषज्ञ डा. जे.डी. रावत के नेतृत्व में उनकी टीम के कई चरणों में शिशु की सर्जरी करके आहार नली बना दी है।
झांसी निवासी अरविन्द यादव के घर में 13 अप्रैल 2016 को शिशु ने जन्म लिया था। जन्म लेने के बाद ही डाक्टरों ने आहारनाल न होने की आशंका की थी। उसे दूध पीने में दिक्कत आ रही थी। केजीएमयल के बाल शल्य विभाग पहुंचने के बाद यहां डा. रावत ने सर्जरी करते हुए खाने की ऊपरी नली को गर्दन से निकाला गया, ताकि थूक बाहर निकलता रहे। इसके साथ ही शिशु भूखा न रहे इसके लिए पेट से दूध देने की नली डाली गई। लगभ दो वर्ष तक शिशु को पेट में पड़ी नली के माध्यम से दूध पिलाया गया, ताकि वह थोड़ा विकसित हो जाए आैर वह सर्जरी करने लायक हो जाए। शिशु का दूसरी बार आपरेशन सात मार्च को हुआ ,इसमें खाने की थैली से कुछ भाग को काटकर अलग किया। इसके बाद उसी विशेष उपकरणों की मदद से आहार नली बनाई गई।
इसके बाद 26 जुलाई को उसका तीसरा बार सर्जरी करते हुए डा. रावत की टीम ने मुहॅ के नली को आहार नली से सफलता पूर्वक जोड़ दिया। अब शिशु को मुहॅ से पहली बार दूध सफलता पूर्वक पिलाया गया । डा. रावत ने बताया कि यह दिक्कत दस हजार बच्चों में केवल एक बच्चे में होती है। उन्होंने बताया कि यह सर्जरी इस लिए जटिल व विशेष है क्योंकि आमतौर पर इस बीमारी में आईसीयू एवं वेन्टीलेटर की आवश्यकता पड़ती है, जबकि इस विधि से आपरेशन में बिना वेन्टीलेटर के सफलता पूर्वक तीनों आपरेशन किये गये।
निजी क्षेत्र के अस्पताल मंे इस जटिल सर्जरी में लगभग एक लाख से डेढ़ लाख तक प्रति सर्जरी में खर्चा आता है। क्यों कि तीन चरणों में शिशु की सर्जरी व फालोअप किया गया। डाक्टरों की आपरेशन टीम में प्रो. जे.डी. रावत के साथ डा. सुधीर सिंह, डा. गुरमीत सिंह,ओ.टी. स्टाफ सिस्टर वन्दना, संजय सिंह, सिस्टर पुष्पा,ऐनस्थीसिया में डा. सरिता सिंह मौजूद थी।
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