अमेरिकी शोधकर्ताओं ने कई अध्ययनों में पाया कि यूरोप व एशिया के लोगों के मुकाबले अफ्रीकी लोग कटु (कड़वा) स्वादों की अनुभूति बेहतर करते हैं। केन्या और केमरून मैं किए गए सर्वेक्षणों से पता चला है कि इसके लिए एक जीन की असाधारण भिन्नता जिम्मेदार हो सकती है। हाल ही में हुईं एक साइंस क्राफ्रेंस में यूनिवर्सिटी आँफ पेन्सिलवेनिया की आनुवंशिक विज्ञानी साराह टिश्कॉफ़ ने बताया कि यूरोप व एशिया के लोगों में ‘टीएएस 2 आर 38’ नामक दो रूपों के जीन का केवल एक प्रकार मौजूद रहता है।
अति अल्प मात्रा में ‘पीटीसी’ की शिनाख्त आसानी से कर पाने में सक्षम थे –
यह जीन पीटीसी नामक कटु-स्वाद कंपॉउंड और ऐसे केमिकल्स की पहचान करता है, जो सब्जियों जैसे; ब्राकोली, चौकी गोभी (ब्रसेल्स स्प्राउट्स) आदि में पाए जाते हैँ। एक प्रयोग के तहत साराह और उनके सहयोगी ने केन्या और कैमरून की विभिन्न जनजातियों को भिन्न- भिन्न कॉन्सेंट्रेशन वाला ‘पीटीसी’ घोल तब तक चखने को दिया, जब तक कि उन्होंने मुंह बना कर उसे थूक नहीं दिया शोधकर्ताओं ने पाया कि यूरोप वासियों की तुलना में केन्या और कैमरून के निवासी कॉन्सेंट्रेशन में मौजूद अति अल्प मात्रा में ‘पीटीसी’ की शिनाख्त आसानी से कर पाने में सक्षम थे।