लखनऊ। किडनी के मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। किडनी प्रत्यारोपण के बाद मरीज सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं। किडनी प्रत्यारोपण डायलिसिस से अच्छा विकल्प हो सकता है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि किडनी डोनेशन करने में लोग पीछे हैं।
यह बात लोहिया संस्थान में नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. अभिलाष चन्द्रा ने
लोहिया संस्थान के नेफ्रोलॉजी विभाग एवं किडनी डिजीज एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसाइटी द्वारा आयोजित कार्यशााला में कही। नेफ्रोलॉजी विभाग प्रमुख डॉ. अभिलाष चन्द्रा ने कहा कि जब किडनी पांच प्रतिशत से कम काम करती हैं, तो प्रत्यारोपण ही कराना ही सही रहता है।
अगर प्रत्यारोपण समय पर न हो, तो बार-बार डायलिसिस करानी पड़ती है। यह डायलिसिस सप्ताह में दो से चार बार करानी होती है। अगर देखा जाए तो डायलिसिस के अपने साइड इफेक्ट भी होते हैं। उन्होंने कहा कि डायलिसिस शुरू होने के कुछ समय बाद ही किडनी प्रत्यारोपण करा लेना चाहिए। समय पर प्रत्यारोपण से सफलता दर बढ़ जाती है। बार-बार डायलिसिस कराने के बाद गुर्दा प्रत्यारोपण की सफलता दर घट जाती है।
डॉ. नम्रता राव ने कहा कि संस्थान में अब तक 180 मरीजों के किडनी प्रत्यारोपण हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक महीने लगभग 1000 डायलिसिस हो रही हैं। ओपीडी में भी काफी संख्या में किडनी डिजीज के मरीज आ रहे हैं। समय पर लक्षणों की पहचान कर इलाज सम्भव है। उन्होंने कहाकि ब्लड प्रेशर की वजह से किडनी खराब हो जाते हैं। लिहाजा समय-समय पर सभी लोगों को ब्लड प्रेशर की जांच करानी चाहिए। पेन किलर दवाओं के सेवन से बचना चाहिए।
संस्थान के निदेशक डॉ. सीएम सिंह ने कहा कि भारत में गुर्दे की बीमारी बहुत आम है। अब समाज में इसकी व्यापकता बढ़ रही है। गुर्दे का प्रत्यारोपण सबसे अच्छा इलाज है। कार्यशाला में पीजीआई की डॉ. अनुपमा कौल, डॉ. संचित रुस्तगी, दिल्ली एम्स के डॉ. दीपक गुप्ता, डॉ. दीपांकर भौमिक, नोटो दिल्ली के डॉ. अवधेश कुमार यादव, पीजीआई सोटो के डॉ. हर्षवर्धन, मोहन फाउंडेशन की पल्लवी पटेल, डॉ. सुभो बनर्जी, व डॉ. एके सिंह मौजूद रहे।