लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पीरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डा.सूर्यकांत ने कहा कि निमोनिया फेफड़े का गंभीर संक्रमण है। जांच के बाद समय पर इलाज आवश्यक है। इलाज में देरी होने से मरीज की जान खतरे में पड़ सकती है। लगभग 20 प्रतिशत संक्रामक मरीजों की मृत्यु निमोनिया के कारण से हो रही है। मंगलवार को रेस्पीरेटरी मेडिसिन विभाग द्वारा आयोजित जागरुकता कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
डॉ. सूर्यकांत ने कहा कि निमोनिया का बचाव एवं इलाज संभव है। सही इलाज न मिलने पर संक्रमण गंभीर हो सकता है। मरीज की मौत का कारण भी बन सकती है।
अस्पताल में होने वाले संक्रामक रोगों में यह बीमारी दूसरे स्तर पर है। प्रतिवर्ष निमोनिया देश के लगभग 45 करोड़ लोगों को प्रभावित करता है जो कि विश्व की जनसंख्या का सात प्रतिशत है। इसमें लगभग 40 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है।
मौजूदा समय में एंटीबायोटिक से इलाज और टीकों से मृत्युदर में कमी आयी। इसके बावजूद विकासशील देशों में बुजुर्गों, बच्चों और जटिल रोगियों में निमोनिया अभी भी मृत्यु का एक प्रमुख कारण बना हुआ है।
वैसे तो यह संक्रमण किसी को भी हो सकता है। कुछ बीमारियां एवं स्थितियां ऐसी है, जिसमें निमोनिया होने का खतरा अधिक होता है।
डॉ. सूर्यकांत ने कहा कि धूम्रपान, शराब एवं किसी भी नशा से पीड़ित लोग, डायलिसिस करवाने वाले रोगी, दिल, फफड़े, लिवर की बीमारियों के मरीज, मधुमेह, गंभीर गुर्दा रोग, बुढ़ापा, नवजात शिशु, कैंसर व एड्स के मरीज को खतरा ज्यादा रहता है। क्योंकि इन मरीजों में रोगों से लड़ने की ताकत कम हो जाती है।
नतीजतन संक्रमण आसानी से हो जाता है। कार्यक्रम में डॉ. आरएएस कुशवाहा, डॉ. संतोष कुमार, डॉ. अजय कुमार वर्मा, डॉ. आनन्द श्रीवास्तव, डॉ. दर्शन कुमार बजाज, डॉ. ज्योति बाजपेई और डॉ. अंकित कुमार व अन्य रेजीडेंट डाक्टर्स तथा भर्ती मरीजों के तीमारदार, नर्सों एवं स्वास्थ्य कार्यकर्ताओ ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया और निमोनिया के बारे में जानकारी प्राप्त की।