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लखनऊ। एक बुजुर्ग पिता अपने बेटे के इलाज के लिए किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय की ओपीडी में स्ट्रेचर और इलाज की दरकार के लिए भटकता रहा। कभी वह हेल्प टैक्स पर जाता तो कभी वहां पर मदद के लिए खड़े कर्मचारियों के हाथ पैर जोड़ता तो कभी पर्चा बनवाकर ओपीडी जाने के लिए स्टेचर की गुहार लगाता उसका बेटा ओपीडी की कुर्सियों पर लेटा हुआ था और उठ नहीं पा रहा था।
वह बुजुर्ग वहां खड़े कर्मचारियों और आने जाने वाले डॉक्टर से मदद की फरियाद कर रहे थे लेकिन कोई भी उसकी मदद नहीं कर रहा था। कुछ मरीज और तीमारदारों ने उसे बेटे को ट्रामा सेंटर ले जाने के लिए कहा लेकिन बुजुर्ग पिता अपने बेटे को ले जाने में असमर्थ था और वहां तक ले जाने के लिए हर किसी से सहायता मांग रहा था। लगभग 1 घंटे तक वह डॉक्टर और कर्मचारियों से मदद की गुहार लगाता रहा लेकिन कोई सुनवाई न होने पर उसके बेटे की मौत उसके आंखों के सामने हो गई। जब वहां मौजूद तीमारदारों ने मरीज की तबीयत को देखकर हंगामा मचा दिया तो कर्मचारियों ने आनन-फानन में जिम्मेदार अधिकारियों को सूचना दी।
अधिकारियों ने पहुंचकर मरीज की नब्ज देखने के बाद सीपीआर और अन्य उपाय बचाने के लिए किया लेकिन तब तक मरीज की मौत हो चुकी थी। प्रत्यक्ष दर्शियों का कहना है कि अगर मरीज की हालत गंभीर थी, तो उसे ट्रामा सेंटर भेजने के लिए मदद करनी चाहिए थी। बुजुर्ग पिता शेख मोहम्मद अपने बेटे जीशान को बचाने के लिए बहुत परेशान था। आखिरकार उसकी किसी ने मदद नहीं की और उसके बेटे ने उसकी आंखों के सामने दम तोड़ दिया।
लोगों का कहना है कि मरीज को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। इस कारण वह जाकर वहां पर बैठ गया था और उसके बाद चलने फिरने में असमर्थता बताई थी। तब उसका बुजुर्ग पिता स्ट्रेचर लेने के लिए इधर-उधर मदद मांग रहे थे। ओपीडी के जिम्मेदार अधिकारियों ने खुद के बचाव के लिए मरीज के शव को औपचारिकता के लिए ट्रामा सेंटर भेज दिया और अपनी जिम्मेदारी से इतिश्री कर ली ।
तीमारदारों का कहना था कि अगर समय पर इलाज मिल जाता तो शायद बुजुर्ग आप को अपने बेटे की मौत अपनी आंखों के सामने ना देखनी पड़ती है। इस बारे में केजीएमयू के प्रवक्ता डॉक्टर सुधीर का कहना है कि मरीज गंभीर हालत में ओपीडी पहुंचा था उसे न्यूरो विभाग में दिखाना था और उसे मानसिक दिक्कत भी बताई जाती है। जानकारी के अनुसार उसके पिता पर्चा बनवा रहे थे तभी उसकी डेथ हो गई।