लखनऊ। केजीएमयू के डॉक्टरों ने एक बार फिर नया आयाम स्थापित कर संस्थान का नाम ऊंचा किया है। इस बार यह बेहतरीन कार्य संस्थान के हेमेटोलॉजी विभाग के डॉक्टरों ने किया है। डॉक्टरों ने मायलोमा ब्लड कैंसर के मरीज में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट कर पहली बार इलाज शुरू किया और इसमें उन्हें सफलता हासिल की है। मरीज का ऑटोलॉगस स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की तकनीक से इलाज कर बीमारी को दूर करने में डाक्टरों की टीम ने सफलता हासिल की है। केजीएमयू के हेमेटोलॉजी विभाग में इस तरह का स्टेम सेल ट्रांसप्लांट पहली बार किया गया है। यह जानकारी हेमेटोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. एके त्रिपाठी ने पत्रकार वार्ता में दी।
उन्होंने बताया कि ३८ वर्षीय मरीज पन्ने लाल डेढ़ साल पहले कैंसर की चपेट में आया। उसे मायलोमा ब्लड कैंसर था, जिसका डॉक्टरों की टीम ने इलाज शुरू किया। शुरुआती दौर में तो मरीज को कुछ फायदा हुआ, लेकिन बाद में उसकी हालत बिगडऩे लगी। डॉक्टरों की टीम ने मरीज का स्टेम सेल ट्रांसप्लांट कर इलाज की योजना बनाई। मरीज गरीब है, इसलिए दवाओं, किट्स व अन्य सामानों की व्यवस्था मेडिकल कॉलेज की ओर से की गई। इस इलाज में केजीएमयू की तरफ से पूरा खर्च उठाया गया है। प्रो.त्रिपाठी के माने तो यदि बाहर इस प्रकार के इलाज का खर्च लगभग ७ लाख आता ।
मरीज पूरी तरह है स्वस्थ्य
प्रो. त्रिपाठी के मुताबिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया १३ मार्च को शुरू हुई और स्टेम सेल १४ मार्च को मरीज को चढ़ाया गया। मरीज को ट्रांसप्लांट वार्ड के एक विशेष विसंक्रमित कमरे में शिफ्ट कर इलाज की प्रक्रिया शुरू की गई। मरीज का ब्लड काउंट कुछ दिनों तक धीरे-धीरे कम होता रहा और उसको हल्का बुखार एवं दस्त की भी समस्या रही। इसके बाद मरीज को हिमैटोपोटिक ग्रोथ फैक्टर एवं ब्राड स्पेक्ट्रम एंटी बायोटिक ट्रीटमेंट पर डाला गया। इस प्रक्रिया के बाद दस दिन के अंदर ब्लड काउंट बढऩे लगा। डॉक्टरों के मुताबिक मरीज अब पूरी तरह स्वस्थ है और दो-तीन दिनों में उसे छुट्टी दे दी जाएगी।
डॉक्टरों की इस टीम ने किया इलाज
केजीएमयू के हेमेटोलॉजी विभाग में इस तरह का स्टेम सेल ट्रांसप्लांट पहली बार किया गया है। ट्रांसप्लांट करने वाली टीम में क्लिनिकल हेमेटोलॉजी विभाग के प्रो. एके त्रिपाठी, डॉ. एसपी वर्मा, पैथोलॉजी विभाग की डॉ. रश्मि कुशवाहा, डॉ. गीता यादव, ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. तूलिका चंद्रा और माइक्रोबायोलॉजी विभाग के डॉ. प्रशांत शामिल रहे।
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