लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में अब वेंटीलेटर से लेकर सी आर्म तक उपकरण खराब होने पर अभी तक कम्पनी से तकनीशियन या इंजीनियर बुलाना पड़ता था। इससे ठीक होने में कई दिन लग जाते थे। अब बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग शुरु होने से उसकी मरम्मत के लिए कई दिनों तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा। सूचना देने पर जल्द से जल्द मरम्मत की जा सकेगी। इसी प्रकार बायोवेस्ट के निस्तारण में भी तकनीकी चूक नहीं होगी। इन सब दिक्कत से निजात दिलाने के लिए केजीएमयू में बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग शुरू करने के लिए शासन को प्रस्ताव भेज दिया गया है। इस विभाग में इंजीनियर से लेकर तकनीशियन, मैकेनिक तक लगभग 22 लोगों की नियुक्ति का प्रस्ताव है।
केजीएमयू में ट्रामा सेंटर से लेकर कहीं न कहीं चिकित्सा उपकरणों के खराब होने पर संबंधित कंपनी को जानकारी भेजी जाती है । उसके बाद वहां से इंजीनियर या तकनीशियन आकर खराबी को समझ कर ठीक के विषय में अपनी कम्पनी को बताता है, तब कहीं जाकर उपकरण ठीक हो पाता है। इस प्रक्रिया में सामान्य उपकरण को ठीक कराने में एक हफ्ता से लेकर15 दिन तक का वक्त लग जाता है। इससे मरीजों को परेशानी होती है अौर उसे मजबूरी में निजी क्षेत्र में जाकर जांच करानी पड़ती है। इस समस्या के निदान के लिए केजीएमयू प्रशासन ने बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग खोलने की कवायद शुरू कर दी है। इससे वेंटीलेटर,आपरेशन थियेटर के तकनीकी उपकरण, अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, एमआरआई सहित अन्य मशीनों के खराब होने पर उन्हें तत्काल ठीक किया जा सकता है।
तत्काल जांच के बाद उपकरण से जुड़ी कम्पनी के इंजीनियरिंग से परामर्श करके ठीक किया जा सकता है। इसके अलावा उनको सही जानकारी देकर जल्द ठीक कराने में मदद मिल सकती है। इसी प्रकार नेशनल ग्रीन ट्ब्यिूनल की ओर से बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण को लेकर लगातार सख्ती को लेकर केजीएमयू पर जुर्माना भी लग चुका था। बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग होने से बायोमेडिकल वेस्ट निस्तारण के मानकों को पूरा करने में आसानी होगी। कुलसचिव केजीएमयू राजेश राय का कहना है कि बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के लिए 22 पद तय किए गए हैं। इसमें इंजीनियर से लेकर मैकेनिक तक सभी संवर्ग के पद है। कार्यपरिषद की मंजूरी के बाद इसे शासन को भेजा जा रहा है।
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