लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में सॉफ्टवेयर के मामले में नया घोटाले का खुलासा हुआ है। इसकी भनक केजीएमयू को अधिकारियों को नहीं लगी और साल भर भुगतान करोड़ों में हो गया । अभी तक केजीएमयू अधिकारी को जिस सॉफ्टवेयर को अभी तक फ्री होने का दावा किया जा रहा था ,उस पर लगभग एक करोड़ 28 लाख रुपया खर्च हो चुका है। जब कंपनी ने सीधे केजीएमयू अधिकारियों से बकाया भुगतान की मांग की, तब इसका खुलासा हुआ। इसके लिए नेशनल इनफॉर्मेटिक्स सेंटर सर्विसेज की ओर से केजीएमयू कुलपति को बकाया भुगतान का पत्र भेजा गया है। इस पत्र के मिलते ही कुलपति में आनन-फानन में तत्कालीन वित्त नियंत्रक और आईटी सेल प्रभारी से स्थिति की जानकारी मांगी है। बताया जाता है कि आईटी सेल प्रभारी और वित्त नियंत्रक दोनों ही बदल चुके हैं। लेकिन उनकी पुरानी टीम अभी भी काम कर रही है जिसमें टीम की एक महिला अधिकारी की भूमिका काफी सक्रिय बताई जा रही है।
बताते चलें केजीएमयू में पहले यहां सेंट्रल पेशेंट मैनेजमेंट सिस्टम नाम से सॉफ्टवेयर चल रहा था। करीब 27 लाख में इस सॉफ्टवेयर को चलाने के लिए वर्ष 2010 में सरवर लिया गया था। फिर 7 करोड़ की लागत से डाटा सेंटर बना गया। एक अक्टूबर वर्ष 2016 में सीपीएमएस को चलाने के लिए वेलफेयर सोसाइटी से चार लाख 97 हजार में क्लाउड सर्वर लिया गया। बताया जाता है कि लाखों रुपए खर्च करने के बाद सीपीएमएस को खर्चीला बता कर बंद कर दिया गया और ई हॉस्पिटल नाम से नया सॉफ्टवेयर शुरू किया गया। केजीएमयू प्रशासन का दावा किया यह हॉस्पिटल निशुल्क है। लेकिन इस बीच ई हॉस्पिटल के संचालन के दौरान नेशनल इनफॉर्मेटिक्स सेंटर सर्विसेज (निक्सी)
को लाखों रुपए भुगतान किए गए। वर्ष 2020 के लिए निक्की ने केजीएमयू प्रशासन को नोटिस भेजी है। इसमें बताया गया कि इस साल का एक करोड़ 28 लाख 45 हजार 402 रुपया भुगतान होना है। इसमें 29 लाख 52हजार 8सौ 32 रुपया बकाया चल रहा है। बकाए की नोटिस मिलते ही कुलपति ने तत्कालीन आईटी सेल प्रभारी और वित्त नियंत्रक से स्थिति के बारे में जानकारी मांगी है।
केजीएमयू प्रवक्ता डॉक्टर सुधीर सिंह का कहना है कि उन्हें इस प्रकरण के बारे में जानकारी नहीं है। इस तरह का कोई प्रकरण होगा तो कुलपति कार्यालय उसका निस्तारण करेगा।