लखनऊ । जमाना चाहे जितना भी बदल जाए, लेकिन मानसिकता नहीं बदल पाती है। शादी के बाद नयी नवेली दुल्हन से भी परिवार व रिश्तेदार पढ़े लिखे होने के बाद भी उम्मीद पर खरा उतरना चाहते है। इस उम्मीद में सबसे बड़ी ख्वाहिश खानदान के वारिस की होती है। शादी के चंद महीने भी नहीं बीतते है आैर दुल्हन से सवाल दागना शुरू हो जाते है कि कब खुश खबरी सुनाओगी। यही हाल दुल्हें मियां का भी होता है। उनसे भी लोग पूछ ही लेते है कब पापा बनोगे।
यह प्रश्न सुन कर होश उड़ जाते है कि क्या जबाव दूं ?
इस प्रश्न पर दिल्ली से लखनऊ दुल्हन बन कर आयी शालिनी झल्ला कर कहती है कि यह प्रश्न सुन कर होश उड़ जाते है कि क्या जबाव दूं। प्रश्न पूछने वाले यह नही सोचते कि उनकी मर्जी क्या है। क्या प्लानिंग है आैर कब तक इस जिम्मेदारी को निभा काबिल हो जाएंगे। बस उन्हें तो शादी के नौ महीने बाद बच्चा गोदी में चाहिए। विकास नगर निवासी आशिया बताती है कि शादी के चंद महीने बाद समारोह में जाने पर बुजुर्ग महिलाएं अगर बच्चे वाले प्रश्न नहीं पूछ पाती थी तो पूरे शरीर को ऐसे देखती थी कि अंाखों से ही अल्ट्रासाउंड कर रही हो कि कितने महीने का है। उनका कहना है कि हर दम्पति का सपना होता है कि उनका बच्चे की अच्छी परिवरिश हो।
कपल्स की भी अपनी भी लाइफ में मस्ती होती है –
आजकल कावेंट स्कूल में पढ़ाने के लिए भी खर्चा ज्यादा आता है। इसके अलावा ज्यादातर लड़कियां पहले से जॉब में होती या कुछ करना चाहती है। तो इसके लिए भी सेटेल होना पड़ता है। इसके साथ ही कपल्स की भी अपनी भी लाइफ में मस्ती होती है जिसको एक दो साल इंज्वाय करना चाहते है। स्त्री रोग विशेषज्ञ श्रीमती आर श्रीवास्तव भी मानती है। गर्भधारण करना पत्नी का अपना निर्णय होता है जिसमें पति की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। दोनों का तालमेल आवश्यक है कि वह बच्चे की जिम्मेदारी उठा सकते है कि नहीं। इसमें मां कितना मानसिक रूप से परिपक्व है। परिवार समाज को भी सोचना चाहिए कि कोई दबाव नहीं बनाये। वैसे भी शादियां देर होती है आैर सभी कपल्स फै मली प्लानिंग का निर्णय जल्द ही कर लेते है कि कितने बच्चे चाहिए।