किशोरावस्था में विवाह गैर कानूनी

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लखनऊ। देश में किशोरावस्था में विवाह करना गैरकानूनी है। इस दृष्टि से किशोरावस्था में गर्भधारण को कानून मान्यता नहीं देता है। जागरूकता के अभाव में ही किशोरियों का विवाह कर दिया जाता है और कम उम्र में ही पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन में भेज दिया जाता है, जिसका सामाजिक एवं पारिवारिक दबावों के चलते वे विरोध नहीं कर पाती।  यह बात प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, मातृ एवं शिशु कल्याण मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह बुधवार को किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के कलाम सेंटर मे आयोजित किशोरियों पर मातृत्व बोझ पर आयोजित कार्यशाला में बतौर मुख्यअतिथि सम्बोधित कर रहे थे।

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श्री सिंह ने कहा किशोरावस्था में विवाह से किशोरियों की शिक्षा तो बाधित होती ही है, साथ ही कम अवस्था में गर्भधारण से उनका शारीरिक और मानसिक विकास भी बाधित हो जाता है। उन्होने कहा प्रदेश में बड़ी जनसंख्या और कई सामाजिक मान्यताओं के कारण एवं जागरूकता के अभाव से किशोरावस्था में विवाह और गर्भधारण का प्रतिशत भी बड़ा है, जिसका प्रभाव कम उम्र में प्रसव के दुष्परिणामों और शिशु मृत्यु के प्रतिशत पर भी दिखायी देता है। उन्होंने कार्यशाला में जानकारी देते हुए कहा कि अपने प्रदेश की पृष्ठभूमि को देखते हुए पहली बार वर्ष 2018 में प्रदेश सरकार अपनी चिकित्सा नीति लेकर आयी है। अपनी नीति होने से हम केन्द्र सरकार से सामंजस्य कर अपने प्रदेश के लिए हितकारी फैसले कर सकेंगे।

श्री सिंह ने कार्यशाला में कन्या भ्रूण हत्या और लैंगिक असमानता पर भी चिन्ता व्यक्त की। उन्होने कहा स्वैच्छिक संस्थानों, स्कूलों, चिकित्सालयों द्वारा, चाहे वे सरकारी हों या गैर सरकारी, ऐसे जागरूकता अभियानों को चलाया जाना बेहद आवश्यक है। कार्यशाला का आयोजन महिला एवं बाल विकास से जुड़े मुद्दों पर कार्य कर रही सामाजिक संस्था सोसाइटी फॉर एडवांसमेंट ऑफ विलेज इकोनॉमी (सेव) द्वारा किया गया था, जिसमें सम्मानित अतिथि के तौर पर सूचना आयुक्त प्रदेश सुभाष चन्द्र सिंह, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के जनरल मैनेजर डॉ. मनोज कुमार शुक्ल, सेव की सचिव श्रीमती चंपा बनर्जी, पॉपुलेशन ऑफ इण्डिया की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर पूनम मुतरेजा, स्त्री रोग विज्ञान की अध्यक्षा प्रो. यशोधरा, स्कूलों एवं सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि, डाक्टर भी मौजूद थे।

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